National News: संतान सप्तमी का महत्वपूर्ण व्रत इस वर्ष 30 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को यह व्रत रखा जाता है। माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए इस दिन विधि-विथान से पूजा-अर्चना करती हैं। यह व्रत जन्माष्टमी के ठीक 14 दिन बाद और राधा अष्टमी से एक दिन पहले आता है।
तिथि और मुहूर्त की जानकारी
सप्तमी तिथि 29 अगस्त की रात 8 बजकर 21 मिनट से प्रारंभ होगी। यह तिथि 30 अगस्त की रात 10 बजकर 46 मिनट तक रहेगी। पूजन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11:05 बजे से दोपहर 12:47 बजे तक निर्धारित किया गया है। इस दौरान पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है।
पूजा की विस्तृत विधि
व्रत रखने वाली महिलाओं को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए। साफ वस्त्र धारण करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। पूजा स्थल को फूल और रंगोली से सजाएं। इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की पूजा करें। नारियल, फूल, फल और मिठाई का भोग लगाएं।
व्रत में पूजे जाने वाले देवी-देवता
इस दिन मुख्य रूप से माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना की जाती है। साथ ही भगवान गणेश, देवी षष्ठी और देवी ललिता की भी पूजा का विधान है। कुछ क्षेत्रों में शालिग्राम की पूजा भी की जाती है। सभी देवताओं को चंदन, हल्दी और गुलाल अर्पित किया जाता है।
व्रत कथा और आरती का महत्व
पूजा के बाद संतान सप्तमी की व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस कथा को सुनने और पढ़ने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। कथा के पश्चात आरती करके प्रसाद वितरण करें। कलावा या मौली को पूजा स्थल पर रखकर बाद में दाहिने हाथ में धारण करें।
व्रत के समापन की प्रक्रिया
यह व्रत सूर्योदय से शुरू होकर अगले दिन के सूर्योदय तक चलता है। व्रत के अगले दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा करने के बाद ही व्रत खोलना चाहिए। इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करने और दान-पुण्य करने की भी परंपरा है।
धार्मिक महत्व और मान्यताएं
ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक रखने से संतान को लंबी आयु और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। संतान के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और उसका भविष्य उज्ज्वल बनता है। माताओं को संतति सुख की प्राप्ति होती है और परिवार में खुशहाली आती है।
