Education News: देश में सैन्य अधिकारी बनने की इच्छा रखने वाले छात्रों के लिए दो प्रमुख विकल्प हैं। ये हैं मिलिट्री स्कूल और सैनिक स्कूल। दोनों ही संस्थान अनुशासन और नेतृत्व कौशल विकसित करते हैं। लेकिन इनकी स्थापना, प्रबंधन और प्रशिक्षण पद्धति में मूलभूत अंतर हैं।
मिलिट्री स्कूलों की स्थापना ब्रिटिश काल में हुई थी। पहला स्कूल 1922 में हिमाचल प्रदेश के चैल में खोला गया। सैनिक स्कूलों की शुरुआत 1961 में स्वतंत्रता के बाद हुई। तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन ने इसकी नींव रखी।
प्रबंधन और नियंत्रण में है बड़ा अंतर
मिलिट्री स्कूल सीधे रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में चलते हैं। इनकी संख्या देश में केवल पांच है। इनका पूरा प्रबंधन केंद्र सरकार करती है। शिक्षण पद्धति पारंपरिक सैन्य प्रणाली पर आधारित है।
सैनिक स्कूल केंद्र और राज्य सरकारों की साझेदारी से संचालित होते हैं। देश में लगभग तैंतीस सैनिक स्कूल हैं। इनका उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है। सेना के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी छात्रों को तैयार किया जाता है।
प्रवेश प्रक्रिया और पात्रता शर्तें
मिलिट्री स्कूल में छठी और नौवीं कक्षा में प्रवेश मिलता है। इसके लिए लिखित परीक्षा देनी होती है। परीक्षा के बाद साक्षात्कार और चिकित्सा परीक्षण होता है। पहले सैन्य कर्मियों के बच्चों को प्राथमिकता मिलती थी।
अब सामान्य वर्ग के छात्र भी आवेदन कर सकते हैं। सैनिक स्कूलों में भी छठी और नौवीं कक्षा में प्रवेश होता है। इसके लिए अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा आयोजित होती है। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी इस परीक्षा का संचालन करती है।
शैक्षणिक पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण
दोनों प्रकार के स्कूल सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध हैं। वे एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम पढ़ाते हैं। दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं सीबीएसई के माध्यम से होती हैं। मुख्य अंतर शिक्षण के वातावरण और प्रशिक्षण विधि में है।
मिलिट्री स्कूलों में शारीरिक प्रशिक्षण, ड्रिल और अनुशासन पर विशेष जोर रहता है। छात्रों को प्रारंभ से ही सैन्य वातावरण में ढाला जाता है। सैनिक स्कूलों में खेल, एनसीसी और व्यक्तित्व विकास पर ध्यान दिया जाता है।
आर्थिक व्यय और शुल्क संरचना
मिलिट्री स्कूल केंद्र सरकार द्वारा संचालित सरकारी संस्थान हैं। अधिकांश व्यय सरकार वहन करती है। इसलिए ये स्कूल अपेक्षाकृत कम खर्चीले हैं। शुल्क, छात्रावास और भोजन का खर्च नियंत्रित रहता है।
सैनिक कर्मियों के बच्चों को अक्सर छूट मिलती है। सैनिक स्कूलों में भी शुल्क संरचना सरकारी सहायता पर निर्भर करती है। विभिन्न राज्य सरकारें छात्रवृत्ति भी प्रदान करती हैं। खर्च स्कूल और सुविधाओं के आधार पर भिन्न हो सकता है।
करियर की तैयारी और भविष्य के विकल्प
मिलिट्री स्कूल छात्रों को सीधे सैन्य जीवन के लिए तैयार करते हैं। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की तैयारी पर विशेष ध्यान दिया जाता है। सैन्य अनुशासन और मूल्यों का गहन प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां से निकले छात्र अक्सर सशस्त्र बलों में जाते हैं।
सैनिक स्कूल छात्रों को विविध विकल्प प्रदान करते हैं। सेना के साथ-साथ सिविल सेवाओं और अन्य पेशों की भी तैयारी कराई जाती है। छात्रों का सर्वांगीण विकास प्राथमिकता होता है। यहां से निकले छात्र विभिन्न क्षेत्रों में सफलता पाते हैं।
छात्राओं के लिए अवसर
पहले दोनों प्रकार के स्कूल केवल छात्रों के लिए थे। अब सैनिक स्कूलों में छात्राओं को भी प्रवेश दिया जा रहा है। यह एक सकारात्मक बदलाव है। छात्राएं भी अब सैन्य करियर की ओर आकर्षित हो रही हैं।
मिलिट्री स्कूल अभी भी मुख्यतः छात्रों के लिए हैं। हालांकि भविष्य में इसमें बदलाव की संभावना है। सेना में महिलाओं की भूमिका बढ़ने से शिक्षण संस्थान भी बदल रहे हैं। यह रुझान देश के लिए शुभ संकेत है।
अभिभावकों के लिए चयन मार्गदर्शन
अभिभावकों को बच्चे की रुचि और लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए। यदि बच्चा केवल सैन्य करियर चाहता है तो मिलिट्री स्कूल बेहतर विकल्प है। यदि विकल्प खुले रखने हैं तो सैनिक स्कूल उपयुक्त हो सकता है।
दोनों ही संस्थान उत्कृष्ट शिक्षा और अनुशासन प्रदान करते हैं। प्रवेश प्रक्रिया की जानकारी आधिकारिक वेबसाइटों से लेनी चाहिए। बच्चे की क्षमता और इच्छा का पूरा ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। सही निर्णय भविष्य की दिशा तय कर सकता है।
