Beijing News: विदेश मंत्री एस जयशंकर की बीजिंग यात्रा ने भारत-चीन संबंधों में नई उम्मीद जगाई है। पांच साल बाद उनकी पहली चीन यात्रा को सकारात्मक संकेत माना जा रहा है। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में हिस्सा लेने तिआनजिन पहुंचे जयशंकर ने चीनी नेतृत्व से मुलाकात की। दोनों देश अब आपसी विश्वास और सहयोग की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। यह यात्रा रिश्तों में गर्माहट लाने का प्रयास है।
ड्रैगन और हाथी का तालमेल
चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग ने जयशंकर से मुलाकात में कहा कि भारत और चीन का सहयोग दोनों के लिए फायदेमंद होगा। उन्होंने ‘ड्रैगन और हाथी के टैंगो’ की बात कही। जयशंकर ने जवाब में रिश्तों में सुधार की अहमियत बताई। यह मुलाकात गलवान संघर्ष के बाद तनावपूर्ण रहे संबंधों में सकारात्मक बदलाव का संकेत देती है। दोनों देश अब संवाद और विश्वास बहाली पर जोर दे रहे हैं।
सीमा विवाद बना चुनौती
भारत-चीन संबंधों में सीमा विवाद अब भी सबसे जटिल मुद्दा है। गलवान संघर्ष के बाद रिश्तों में तनाव बढ़ा था, लेकिन अब दोनों पक्ष भरोसा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि स्थायी समाधान के लिए आपसी संवाद और सुरक्षा सहयोग जरूरी है। लोगों के बीच संपर्क और शैक्षणिक आदान-प्रदान भी विश्वास की नींव को मजबूत कर सकते हैं। यह यात्रा इन मुद्दों पर चर्चा का मौका दे रही है।
वैश्विक मंचों पर सहयोग
भारत और चीन SCO और BRICS जैसे मंचों पर पहले से साथ काम कर रहे हैं। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि दोनों देशों को प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए। अगर दोनों मिलकर वैश्विक चुनौतियों का सामना करें, तो ग्लोबल साउथ को मजबूती मिलेगी। जयशंकर की यात्रा को इन मंचों पर सहयोग बढ़ाने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।
सतत संवाद की जरूरत
चीनी मीडिया ने जयशंकर की यात्रा को भारत-चीन संबंधों में दूसरा बड़ा पड़ाव बताया। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, यह दौरा अक्टूबर 2024 में पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद अहम है। दोनों देशों के बीच संवाद की खिड़की खुल चुकी है। यह यात्रा एशिया की स्थिरता और वैश्विक संतुलन के लिए सकारात्मक कदम हो सकती है। सहयोग को प्राथमिकता देना अब दोनों की जिम्मेदारी है।
