India News: एक रूसी उद्यमी का भारत के बारे में वायरल वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा का केंद्र बना हुआ है। अनास्तासिया शारोवा ने अपने इंस्टाग्राम पर ‘काश! मुझे ये बातें भारत आने से पहले पता होतीं’ शीर्षक से पोस्ट साझा की। इस पोस्ट में उन्होंने भारत में रहने के अपने अनुभवों के बारे में बताया। यूपीआई की सुविधा और हर राज्य में हिंदी न चलने जैसे पहलुओं को उन्होंने उजागर किया। उनकी यह ईमानदार राय ने भारतीय सोशल मीडिया यूजर्स का ध्यान खींचा है।
अनास्तासिया शारोवा का कहना है कि भारत में प्रमाणीकरण के लिए वन टाइम पासवर्ड बहुत आम है। वह ओटीपी को अपने मैसेज बॉक्स में सबसे ज्यादा देखती हैं। भारत की ग्रोसरी डिलीवरी व्यवस्था ने उन्हें प्रभावित किया है। उन्होंने बताया कि ज्यादातर सामान दस मिनट के भीतर डिलीवर हो जाता है। इस वजह से उन्होंने सुपरमार्केट जाना पूरी तरह बंद कर दिया है। यह सेवा उनके लिए बहुत सुविधाजनक साबित हुई है।
शारोवा ने भारतीय लोगों के व्यवहार पर एक दिलचस्प बात कही। उन्होंने कहा कि भारतीय लोग शायद ही कभी सीधे तौर पर ‘ना’ कहते हैं। आसपास के लोग किसी काम के लिए सीधा मना नहीं करते। उन्हें इशारों को समझना सीखना पड़ा। हमेशा एक वैकल्पिक योजना तैयार रखनी पड़ती है। यह संवाद का एक अलग तरीका है।
भारत की विविधता का अनुभव
उन्होंनेपहले दिवाली मनाने के बारे में भी पोस्ट किया था। शारोवा ने बताया कि भारत में त्योहारों का कैलेंडर हर कुछ किलोमीटर बाद बदल जाता है। यह विविधता उन्हें हैरान करती है। अपने दैनिक जीवन के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें दोबारा गाड़ी चलाना सीखना पड़ा। छोटी से छोटी दूरी के लिए भी वाहन की जरूरत पड़ती है। यहां की यातायात व्यवस्था यूरोप से बिल्कुल अलग है।
उन्होंने कहा कि अब उन्हें रात में पंखे की आवाज की आदत हो गई है। इसके बिना वे सो नहीं पाती हैं। भारत की जलवायु के अनुकूल होने में यह एक कदम था। उन्होंने कुछ और महत्वपूर्ण बिंदुओं को साझा किया। किलोमीटर में दूरी और यात्रा के वास्तविक समय में कोई सीधा संबंध नहीं है। ट्रैफिक हालात यात्रा का समय तय करते हैं।
जीवन के छोटे-छोटे पहलू
उन्होंनेमजाक में कहा कि उनके बगीचे के सारे फल उनके पहुंचने से पहले ही बंदर खा जाते हैं। यह भारत में शहरी वन्य जीवन का एक पहलू है। अगर उनकी गली में कोई बड़ा ट्रक आता दिखाई देता है तो इंटरनेट बंद हो सकता है। ऐसा एक या दो दिन के लिए होता है। उन्होंने कहा कि उन्हें मानसून की बहुत याद आएगी। यह मौसम उन्हें बहुत पसंद है।
उन्होंने एक सामाजिक पहलू के बारे में भी बताया। अगर कोई उन्हें ‘आंटी’ कहकर बुलाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह बूढ़ी दिखती हैं। यह सम्मानजनक संबोधन का एक तरीका है। यह सांस्कृतिक अंतर को दर्शाता है। भारत में रहना उनके लिए एक सीखने का अनुभव रहा है।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
सोशल मीडियायूजर्स ने उनकी बेबाक राय के लिए उनकी सराहना की। कुछ लोगों ने उन्हें कुछ बिंदुओं के बारे में शिक्षित भी किया। एक यूजर ने लिखा कि मुंबई, केरल या असम जैसे तटीय इलाकों में मानसून का अनुभव मिलेगा। एक अन्य यूजर ने कहा कि यह भारत के बारे में बिना नफरत का सटीक विवरण है।
एक यूजर ने भाषाई विविधता पर प्रकाश डाला। उन्होंने लिखा कि यूरोप में चौबीस आधिकारिक भाषाएं हैं। भारत में बाईस आधिकारिक भाषाएं हैं। भारत अपने आप में एक उपमहाद्वीप है। यह टिप्पणी भारत की विविधता को समझने में मदद करती है। शारोवा की टिप्पणियां इस विविधता को छूती हैं।
अनास्तासिया शारोवा रूस में पैदा हुईं और वहीं पली-बढ़ीं। उनका भारत आना और यहां के अनुभव साझा करना दिलचस्प है। उनकी बातें कई अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की भावनाओं से मेल खाती हैं। भारत में डिजिटल भुगतान प्रणाली ने उन्हें प्रभावित किया। यूपीआई ने लेनदेन को बहुत आसान बना दिया है।
उनकी यात्रा के अनुभव भारत में पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने जिन बातों का उल्लेख किया है वे नए आने वालों के लिए मददगार हो सकती हैं। भारत में रहना एक गतिशील अनुभव है। हर दिन नया सीखने को मिलता है। शारोवा की पोस्ट ने इसी बात को उजागर किया है।