Himachal News: मंडी जिले की जय देवी पंचायत में श्मशान घाट को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। ग्रामीणों ने पंचायत के काम न होने पर खुद पैसे इकट्ठा कर श्मशान घाट बना लिया। अब पंचायत द्वारा वहीं दूसरा श्मशान घाट बनाने की योजना पर स्थानीय लोग भड़क गए हैं। उनका कहना है कि अब उन्हें पंचायत के श्मशान घाट की कोई आवश्यकता नहीं है।
ग्रामीणों ने बताया कि पंचायत को पहले ही श्मशान घाट निर्माण के लिए बजट मिल चुका था। मनरेगा से लगभग आठ लाख रुपये भी आए थे। लेकिन काम न होने के कारण यह राशि लैप्स हो गई। इसके बाद गांव वालों ने स्वयं सहायता से पैसा इकट्ठा किया और श्मशान घाट का निर्माण करवाया।
अब पंचायत द्वारा उसी स्थान पर श्मशान घाट बनाने की तैयारी ने विवाद खड़ा कर दिया है। स्थानीय निवासी सख्त विरोध जता रहे हैं। उनका मानना है कि एक ही स्थान पर दो श्मशान घाट बनाने का कोई तर्क नहीं है। इससे भूमि का दुरुपयोग होगा।
प्रशासनिक स्तर पर शिकायत
इस मामले में पंचायत प्रतिनिधियों और कुछ लोगों ने मंडी के जिला उपायुक्त को अवगत करवाया है। उन्होंने उचित कार्रवाई की मांग की है। इस संबंध में एक समाचार रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई थी। उसमें बीडीओ रमा सूद के हवाले से जानकारी दी गई थी।
रिपोर्ट के अनुसार बीडीओ धनोटू स्वयं मौके पर गए थे। लेकिन जब पत्रकार टीम ने इस बारे में पुष्टि के लिए संपर्क किया तो बीडीओ ने कोई जानकारी होने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है और न ही किसी पत्रकार का फोन आया है।
पंचायत बैठक में प्रस्ताव
पंचायत की एक मासिक बैठक में इस मामले पर चर्चा हुई थी। बैठक में एक प्रस्ताव रखा गया था कि वहां पर एक सार्वजनिक शेड बनेगा। लेकिन अब इसी प्रस्ताव को श्मशान घाट का नाम देकर शिकायत दर्ज करवाई जा रही है। इससे स्थिति और उलझ गई है।
ग्रामीणों का आरोप है कि पंचायत जानबूझकर भ्रम की स्थिति पैदा कर रही है। शेड के प्रस्ताव को अचानक श्मशान घाट में बदल दिया गया है। इससे स्पष्ट है कि पंचायत अपनी योजना को मनवाने के लिए दबाव बना रही है।

स्थानीय लोगों ने स्पष्ट किया कि उनके पास पहले से ही कार्यशील श्मशान घाट है। उन्होंने इसे अपने संसाधनों से बनवाया है। ऐसे में पंचायत द्वारा सार्वजनिक धन का दोहरा खर्च उचित नहीं है। यह सरकारी संसाधनों की बर्बादी होगी।
वित्तीय प्रबंधन पर सवाल
इस पूरे मामले ने पंचायत के वित्तीय प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। पहले मिले बजट का सदुपयोग क्यों नहीं किया गया? मनरेगा की राशि लैप्स क्यों होने दी गई? ग्रामीणों को स्वयं श्मशान घाट बनाने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा?
यह मामला स्थानीय स्वशासन की चुनौतियों को उजागर करता है। ग्रामीणों और चुने हुए प्रतिनिधियों के बीच समन्वय का अभाव साफ दिख रहा है। ऐसे में प्रशासनिक हस्तक्षेप आवश्यक हो गया है।
जिला प्रशासन ने इस मामले में संज्ञान लिया है। दोनों पक्षों की बात सुनी जा रही है। एक समन्वित समाधान खोजा जा रहा है जिससे ग्रामीणों की भावनाओं का सम्मान हो और नियमों का भी पालन हो सके।
