Business News: भारतीय रुपया आज एक ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 90 रुपये के मनोवैज्ञानिक स्तर को भी पार कर गया। व्यापार की शुरुआत में ही भारी दबाव देखा गया। यह गिरावट वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू बाजार से विदेशी निधियों के बाहर जाने का नतीजा है।
सुबह बाजार खुलते ही रुपया 89.97 प्रति डॉलर के स्तर पर शुरू हुआ। यह पिछले बंद भाव से करीब दस पैसे कमजोर था। इसके बाद गिरावट का सिलसिला थमा नहीं। दिन के कारोबार में रुपया 90.14 प्रति डॉलर तक लुढ़क गया। यह भारतीय मुद्रा का अब तक का सबसे निचला स्तर दर्ज किया गया।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली प्रमुख वजह
रुपयेमें आई भारी गिरावट के पीछे एक बड़ा कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों का व्यवहार है। ये निवेशक भारतीय शेयर बाजार से लगातार पैसा निकाल रहे हैं। जब वे शेयर बेचते हैं तो उन्हें रुपये में मिली राशि को डॉलर में बदलना होता है।
इस प्रक्रिया से बाजार में डॉलर की मांग अचानक बढ़ जाती है। डॉलर की इस बढ़ी हुई मांग का सीधा दबाव रुपये की कीमत पर पड़ता है। नतीजतन, रुपया कमजोर होता चला जाता है। यह प्रवाह पिछले कई हफ्तों से जारी है।
वैश्विक कारणों ने बढ़ाया डॉलर का दबाव
दुनियाभर में आर्थिक अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। निवेशक जोखिम से बचने के लिए सुरक्षित संपत्ति की ओर भाग रहे हैं। अमेरिकी डॉलर को ऐसी ही एक सुरक्षित पनाहगाह माना जाता है। इस वजह से वैश्विक स्तर पर डॉलर की मांग बढ़ गई है।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक की ब्याज दर नीति को लेकर भी अनिश्चितता है। इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों में भू-राजनीतिक तनाव ने भी डॉलर को मजबूती प्रदान की है। जब डॉलर वैश्विक स्तर पर मजबूत होता है तो रुपया जैसी मुद्राएं स्वाभाविक रूप से कमजोर पड़ जाती हैं।
आम जनता पर पड़ने वाला प्रभाव
रुपयेकी इस रिकॉर्ड गिरावट का असर सीधे आम लोगों की जेब पर पड़ेगा। भारत कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक सामान और मशीनरी का बड़ा आयातक है। इन सभी वस्तुओं की खरीद डॉलर में की जाती है। रुपया कमजोर होने से आयात की लागत बढ़ जाएगी।
इसका सबसे स्पष्ट असर पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर देखने को मिल सकता है। विदेश यात्रा या शिक्षा भी महंगी हो जाएगी। विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने वाली कंपनियों पर भी बोझ बढ़ेगा। उनकी कर्ज चुकाने की लागत में वृद्धि होगी।
निर्यातकों को मिल सकता है लाभ
हर सिक्केके दो पहलू होते हैं। रुपये की कमजोरी से निर्यातक कंपनियों को कुछ लाभ मिल सकता है। जब रुपया कमजोर होता है तो निर्यातकों को अपने डॉलर कमाई के बदले अधिक रुपये प्राप्त होते हैं। इससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ सकती है।
लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इतनी तेज गिरावट और अस्थिरता व्यापार के लिए ठीक नहीं है। लंबी अवधि की योजना बनाना मुश्किल हो जाता है। बाजार में अनुमान लगाना कठिन हो जाता है। इसलिए संतुलित विनिमय दर ही अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर रहती है।
भारतीय रिजर्व बैंक की भूमिका
ऐसेमौकों पर भारतीय रिजर्व बैंक बाजार में हस्तक्षेप करता है। केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचकर रुपये को सहारा देने की कोशिश करता है। इससे डॉलर की आपूर्ति बढ़ती है और रुपये पर दबाव कुछ कम होता है।
हालांकि, वर्तमान स्थिति में बाजार का दबाव बहुत अधिक है। अकेले केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप से रुपये में आई तेज गिरावट को रोक पाना मुश्किल लग रहा है। आरबीआई स्थिति पर नजर बनाए हुए है और आवश्यक कदम उठा सकता है।
आगे की राह क्या दिखती है
विश्लेषकोंका मानना है कि भविष्य की दिशा वैश्विक कारकों पर निर्भर करेगी। अगर विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकालना जारी रखते हैं तो दबाव बना रह सकता है। अमेरिकी ब्याज दरों का रुख भी एक अहम भूमिका निभाएगा।
बाजार अब केंद्रीय बैंक की अगली चाल और डॉलर सूचकांक के रुझान पर नजर गड़ाए हुए है। हालात तब तक अनिश्चित बने रहेंगे जब तक वैश्विक स्तर पर स्थिरता नहीं लौटती। निवेशक सतर्कता बरत रहे हैं।
