New Delhi News: भारतीय मुद्रा ने अब तक के सबसे निचले स्तर को छू लिया है। इतिहास में पहली बार एक डॉलर की कीमत 90 रुपये के पार चली गई है। गुरुवार को यह आंकड़ा 90.4 रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। वैसे तो भारत की जीडीपी तेजी से बढ़ रही है। लेकिन डॉलर के मुकाबले रुपये की यह कमजोरी चिंता का विषय है। इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ सकता है।
क्यों बढ़ रहा है डॉलर का भाव?
बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव इसकी एक बड़ी वजह है। अप्रैल 2025 से अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर भारी टैरिफ लगाया है। इसके अलावा विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से पैसा निकाला है। साल 2025 में अब तक 17 अरब डॉलर की निकासी हुई है। कच्चा तेल और अन्य वस्तुओं के आयात बिल बढ़ने से भी डॉलर की मांग काफी ज्यादा बढ़ गई है।
आजादी से अब तक का सफर
रुपये की ऐतिहासिक चाल को समझना बहुत जरूरी है। साल 1947 में देश की आजादी के वक्त एक डॉलर की कीमत लगभग एक रुपये मानी जाती थी। उस समय देश पर विदेशी कर्ज ना के बराबर था। साल 1966 के आर्थिक संकट के बाद यह भाव बढ़कर 7.50 रुपये हो गया। साल 1991 में आर्थिक उदारीकरण के दौरान एक डॉलर का भाव 22.74 रुपये तक पहुंच गया था।
उदारीकरण के बाद की स्थिति
साल 2000 आते-आते डॉलर 45 रुपये का हो गया था। इसके बाद 2008 की वैश्विक मंदी ने इसे 50 के पार पहुंचाया। साल 2013 में यह 68 रुपये और 2020 में कोरोना काल के दौरान 76 रुपये तक गिर गया। साल 2025 में रुपये में 5 फीसदी से ज्यादा की भारी गिरावट आई है। अब यह 90 रुपये के मनोवैज्ञानिक स्तर को तोड़ चुका है। आरबीआई ने हस्तक्षेप किया, लेकिन वैश्विक दबाव ज्यादा है।
महंगे डॉलर का आप पर असर
रुपये की इस ऐतिहासिक गिरावट का असर आम आदमी पर पड़ेगा। विदेश में पढ़ाई करना और घूमना अब महंगा हो जाएगा। भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल बाहर से खरीदता है। डॉलर महंगा होने से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ सकते हैं। ईंधन महंगा होने से माल ढुलाई का खर्च बढ़ेगा। इससे रोजमर्रा की चीजें महंगी हो सकती हैं। हालांकि, आईटी सेक्टर और निर्यातकों को इससे थोड़ी राहत मिल सकती है।
