Business News: भारतीय वित्तीय बाजारों के लिए बुधवार का दिन ऐतिहासिक रहा। रुपया पहली बार डॉलर के मुकाबले गिरकर 90 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर गया। यह भारतीय मुद्रा का अब तक का सबसे निचला स्तर है। हालांकि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है और विकास दर पिछली छह तिमाहियों में सबसे ऊंची है। खुदरा महंगाई भी 0.25% के निचले स्तर पर है। इसके बावजूद मुद्रा में आई इस गिरावट से आयात महंगा होने और उद्योगों की लागत बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है।
गिरावट के मुख्य कारण
बाजार के जानकारों के मुताबिक, मुद्रा की कमजोरी के पीछे कई बड़े कारण जिम्मेदार हैं।
- विदेशी निवेशकों की बिकवाली: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने इस साल भारतीय बाजार से 17 अरब डॉलर से ज्यादा की निकासी की है। पैसा बाहर जाने से घरेलू मुद्रा पर दबाव बढ़ा है।
- बढ़ता व्यापार घाटा: अक्टूबर में भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 41.7 अरब डॉलर हो गया है। सितंबर में यह 32.2 अरब डॉलर था। आयात ज्यादा और निर्यात कम होने से डॉलर की मांग बढ़ी है।
- वैश्विक अनिश्चितता: भारत-अमेरिका ट्रेड डील में देरी और यूरोप-एशिया में जारी भू-राजनीतिक तनाव ने भी निवेशकों को सतर्क कर दिया है।
इन 5 सेक्टरों को होगा भारी नुकसान
रुपये की कमजोरी का सीधा असर आपकी जेब और इन प्रमुख सेक्टरों पर पड़ेगा।
- पेट्रोलियम सेक्टर: भारत अपनी जरूरत का 85% कच्चा तेल आयात करता है। डॉलर महंगा होने से तेल कंपनियों की लागत बढ़ेगी। इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रखने के लिए सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ सकता है।
- महंगा सोना और इलेक्ट्रॉनिक्स: भारत में सोना और इलेक्ट्रॉनिक्स के पुर्जे बड़ी मात्रा में आयात होते हैं। मुद्रा गिरने से मोबाइल, टीवी और ज्वैलरी की कीमतें बढ़ना तय है।
- विदेशी शिक्षा: विदेश में पढ़ने वाले छात्रों के लिए ट्यूशन फीस और रहने का खर्च बढ़ जाएगा। एजुकेशन लोन की ईएमआई भी महंगी हो सकती है।
- खाद और कृषि: खाद का बड़ा हिस्सा विदेश से आता है। आयात महंगा होने से सरकार का सब्सिडी बिल, जो पहले ही 1.68 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है, और बढ़ सकता है।
- एयरलाइंस और कार कंपनियां: एयरलाइंस का ईंधन (ATF) और लीज रेंट डॉलर में जाता है। वहीं, लग्जरी कारों और इलेक्ट्रिक व्हीकल के पार्ट्स महंगे होने से गाड़ियां महंगी हो सकती हैं।
इन 3 सेक्टरों की होगी चांदी
मुद्रा की गिरावट कुछ विशेष सेक्टरों के लिए फायदे का सौदा भी साबित होती है।
- आईटी और फार्मा: ये कंपनियां अपनी कमाई डॉलर में करती हैं। रुपया कमजोर होने से इनकी आय भारतीय मुद्रा में बढ़ जाएगी। इससे इनके शेयरों में तेजी देखने को मिल सकती है।
- निर्यात: भारतीय सामान विदेशी बाजार में सस्ते हो जाएंगे। इससे टेक्सटाइल, जेम्स, और इंजीनियरिंग गुड्स के निर्यातकों को अमेरिकी टैरिफ से निपटने में मदद मिलेगी।
- रेमिटेंस: विदेश में काम करने वाले भारतीयों द्वारा भेजा गया पैसा अब ज्यादा मूल्यवान होगा। 2025 में भारत ने रिकॉर्ड 135.5 अरब डॉलर का रेमिटेंस प्राप्त किया है, जो अब और बढ़ सकता है।
