35.1 C
Delhi
गुरूवार, 21 सितम्बर,2023

आरएसएस ने विस्थापित शरणार्थियों के लिए एकत्र किए गए धन से किया प्रचार प्रसार: किताब में दावा

- विज्ञापन -

Delhi News: अटल बिहारी वाजपेयी ने 1947-48 के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र राष्ट्रधर्म और पाञ्चजन्य के संस्थापक संपादक के रूप में काम किया था। अटल की जीवनी ‘VAJPAYEE: The Ascent of the Hindu Right’ में दावा किया गया है कि तब वाजपेयी ठीक उसी तरह के RSS कार्यकर्ता थे, जिसे सरकार ने उस माहौल को बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था जिसमें गांधी की हत्या हुई।

अगस्त 1947 के अंत में अटल आरएसएस की मासिक पत्रिका की स्थापना में अपना योगदान देने लखनऊ पहुंचे। तब संघ हिंदी पट्टी में विस्तार को बेताब था। लखनऊ में एक प्रेस स्थापित करना आउटरीच का हिस्सा था। संघ को इस काम के लिए युवा अनुयायियों की आवश्यकता थी, जो बदले में बहुत अधिक मांग किए बिना खुद को समर्पित कर सकें। अटल और अन्य लोगों को पत्रकारिता का बहुत कम अनुभव था। बावजूद इसके उन्हें सह-संपादक बनाया गया। हालांकि यह एक इंटर्नशिप की तरह था। इसके लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलना था।

- विज्ञापन -

UP में ‘राष्ट्रधर्म’ चलाने का आइडिया किसका था?

राष्ट्रधर्म को उत्तर प्रदेश में शुरू करने का आइडिया आरएसएस के प्रांत संयोजक भाऊराव देवरस का था। भाऊराव नागपुर के ब्राह्मण थे। वह 1927 के अंत में हेडगेवार के प्रत्यक्ष संरक्षण में आरएसएस शाखा में भाग लेने वाले बच्चों के शुरुआती बैच में से एक थे।

1937 में 20 वर्षीय भाऊराव को यूपी में संघ का विस्तार करने के लिए लखनऊ भेजा गया। चूंकि हेडगेवार के पास अतिरिक्त पैसे नहीं थे, इसलिए भाऊराव ने खर्च चलाने के लिए फुटपाथ पर गुब्बारे बेचने से लेकर स्कूली बच्चों को ट्यूशन देने तक सब कुछ किया। वह डटे रहे और समय के साथ, लखनऊ, कानपुर और बनारस में संघ शाखाएं स्थापित की।

- विज्ञापन -

कहां से आया राष्ट्रधर्म के लिए फंड?

अटल को रीवा राज्य के आरएसएस प्रचारक राजीव लोचन अग्निहोत्री के साथ संपादकीय जिम्मेदारियां साझा करनी थी। राष्ट्रधर्म एक मासिक पत्रिका थी, जिसके संस्करण को हिंदू कैलेंडर का पालन करते हुए प्रकाशित करना था। पहला अंक 31 अगस्त 1947 को राखी के अवसर पर रिलीज किया गया।

पहले ही अंक की 3,000 प्रतियां छापने का निर्णय लिया गया। यह देखते हुए कि उस समय के सबसे लोकप्रिय हिंदी पत्रिका का औसत प्रसार 500 से अधिक नहीं था। इस निर्णय से पता चलता है कि पत्रिका के पास पर्याप्त वित्तीय सहायता थी। राधेश्याम कपूर नामक एक स्थानीय स्वयंसेवक को प्रकाशक बनाया गया था।

- विज्ञापन -

‘VAJPAYEE: The Ascent of the Hindu Right’ के लेखक अभिषेक चौधरी अटल की जीवनी में दावा करते हैं कि राष्ट्रधर्म के लिए पैसा संघ नेटवर्क से आया था, इसमें से कुछ पैसा आरएसएस ने विस्थापित शरणार्थियों के कल्याण के लिए एकत्र किए गए धन से भी निकाल लिया था। हालांकि, कानूनी जाल से बचने के लिए राष्ट्रधर्म को भाऊराव या दीनदयाल के नाम पर पंजीकृत नहीं किया गया था।

वाजपेयी के पिता ने गांधी पर साधा निशाना

राष्ट्रधर्म का पहला अंक अच्छा चला। इसे हर जगह आरएसएस समर्थकों ने खरीदा। अटल प्रसन्न थे, ‘वास्तव में हमें अतिरिक्त 500 प्रतियां छापनी पड़ीं थी।’ अगले अंक में उन दो लोगों के लेख छपे, जिन्हें अटल बहुत सम्मान देते थे।

पहला लेख हिंदुत्व के प्रमुख सिद्धांतकार वी.डी. सावरकर का था। दरअसल, अटल ने दूसरे अंक में सावरकर के Essentials Of Hindutva का हिंदी सारांश छापा था। सावरकर ने अपना यह लोकप्रिय निबंध रत्नागिरी की जेल में रहते हुए लिखा था।

दूसरा लेख ‘राष्ट्र-रक्षा’ शीर्षक से था, जिसे अटल बिहारी वाजपेयी के पिता ‘कृष्ण बिहारी लाल वाजपेयी बीए, एलएलबी’ ने लिखा था। दरअसल, तब अटल के बाबूजी कानून की डिग्री हासिल करने वाले देश के सबसे उम्रदराज लोगों में से एक थे। इसलिए वह अपने नाम में अपनी डिग्री जरूर लगाते थे।

अटल के पिता ने अपने लेख में गांधी पर निशाना साधा था, ‘जो व्यक्ति उपदेश देता है कि ‘मरना ही है तो मरो, लेकिन कभी मत मारो’, उसका अपना सबसे घातक हथियार आत्महत्या है। भगवान कृष्ण ने ऐसे लोगों को नपुंसक कहा है… यदि राजनीतिक नेतृत्व मजबूत हाथों में होता, तो हमें इस तरह का मूर्खतापूर्ण, घृणित समझौता नहीं करना पड़ता। न ही हमें इस तरह के नरसंहार और राक्षसी कृत्य देखने पड़ते।’

कृष्ण बिहारी लाल वाजपेयी ने अपना लेख यह सिफारिश करते हुए समाप्त किया कि राम राज्य का सपना पेश करने वाले गांधी को तुलसीदास का रामचरितमानस दोबारा पढ़ना चाहिए। राम को भी अपनी वानर सेना को लंका तक पहुंचाने के लिए तूफानी समुद्र को धमकी देनी पड़ी थी। अगर कोई भूल गया है तो याद दिला दूं राम राज्य को पनपने के लिए रावण का विनाश आवश्यक था।’

- Advertisement -

आपकी राय:

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

ताजा समाचार

- विज्ञापन -

लोकप्रिय समाचार