India News: भारतीय रिजर्व बैंक ने सोने के भंडार को वापस देश लाने का एक और बड़ा ऑपरेशन पूरा किया है। मार्च से सितंबर 2025 के बीच आरबीआई ने 64 टन से अधिक सोना विदेश से भारत पहुंचाया है। यह कदम देश की वित्तीय सुरक्षा और आर्थिक संप्रभुता को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे पहले मई में भी करीब 100 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड से वापस लाया गया था।
सितंबर 2025 तक भारत के कुल गोल्ड रिजर्व का आंकड़ा 880 मीट्रिक टन पर पहुंच गया है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 25 टन की वृद्धि को दर्शाता है। इस भंडार में से 575.8 टन सोना अब देश के अपने गोल्ड वॉल्ट्स में सुरक्षित जमा है। शेष भाग अभी भी बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के पास रखा हुआ है।
मार्च 2023 के बाद से अब तक आरबीआई कुल 274 टन सोना वापस ला चुका है। इसके चलते देश के विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। यह हिस्सेदारी 11.7 प्रतिशत से बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गई है। इस वृद्धि में सोने की बढ़ती वैश्विक कीमतों का भी कुछ योगदान रहा है।
सोना वापसी की गोपनीय प्रक्रिया
सोना वापस लाने का यह पूरा मिशन अत्यंत गोपनीय तरीके से संपन्न कराया जाता है। इस संबंध में सभी महत्वपूर्ण फैसले आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड और वित्त मंत्रालय के साथ मिलकर लिए जाते हैं। सोने को इंग्लैंड से विशेष तौर पर चार्टर्ड किए गए विमानों के जरिए भारत लाया जाता है।
इस पूरी यात्रा के दौरान भारतीय सुरक्षा एजेंसियां हर पल इसकी निगरानी करती हैं। मुंबई और नागपुर में आरबीआई के पास विशेष गोल्ड वॉल्ट हैं। हर बार सोना लाने के बाद उसे बारीकी से तोला जाता है, उसकी शुद्धता की जांच की जाती है और फिर सील करके रखा जाता है। यह प्रक्रिया कई हफ्तों तक चलती है।
आर्थिक और रणनीतिक कारण
आरबीआई के इस बड़े फैसले के पीछे कई गहरे आर्थिक और रणनीतिक कारण काम कर रहे हैं। पहला कारण है दुनिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव। रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता पैदा की है। ऐसे में अपनी कीमती संपत्ति को अपने ही देश में रखना ज्यादा सुरक्षित माना जा रहा है।
दूसरा प्रमुख कारण वित्तीय संप्रभुता को मजबूत करना है। वर्ष 1991 के गंभीर आर्थिक संकट की यादें अब भी ताजा हैं। उस समय भारत को विदेशी ऋण चुकाने के लिए अपना सोना गिरवी रखना पड़ा था। आरबीआई अब ऐसी किसी भी स्थिति के लिए देश को पहले से तैयार करना चाहता है।
डॉलर आधारित वैश्विक वित्तीय प्रणाली में आती अस्थिरता भी एक बड़ा कारण है। कई देश अब अपने रिजर्व को विविधतापूर्ण बना रहे हैं और सोना इसका एक अहम हिस्सा बन गया है। अपना सोना अपने पास रखकर भारत बाहरी दबावों से मुक्त होकर आर्थिक नीतियां बना सकता है।
भविष्य के लिए संकेत
विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई की यह रणनीति भविष्य में आने वाली वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के खिलाफ भारत के लिए एक मजबूत ढाल का काम करेगी। सोना केवल एक निवेश या बचत का जरिया नहीं रह गया है। यह अब देश की आर्थिक विश्वसनीयता और स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता का प्रतीक बन चुका है।
इस कदम से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत की साख में भी इजाफा होगा। देश की आर्थिक मजबूती को दर्शाने वाले ये संकेत निवेशकों के विश्वास को बढ़ाते हैं। आरबीआई लगातार देश के गोल्ड रिजर्व को बढ़ाने और उसे सुरक्षित रूप से देश के भीतर रखने पर जोर दे रहा है।
