शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

रेंट एग्रीमेंट: 11 महीने का करार ही क्यों होता है इतना पॉपुलर? जानें कानूनी और वित्तीय कारण

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Real Estate News: अधिकांश किराया समझौते ग्यारह महीने की अवधि के लिए किए जाते हैं। इसके पीछे कानूनी और वित्तीय कारण हैं। बारह महीने के करार के लिए पंजीकरण और स्टांप शुल्क का अतिरिक्त खर्च आता है। ग्यारह महीने का समझौता इस झंझट से बचाता है।

स्क्वायर यार्ड्स के प्रिंसिपल पार्टनर सुधांशु मिश्रा इस प्रक्रिया को सरल भाषा में समझाते हैं। यह दृष्टिकोण मकान मालिक और किराएदार दोनों के लिए फायदेमंद साबित होता है। आइए जानते हैं किराया समझौते से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।

किराया समझौता क्या होता है

किराया समझौता एक कानूनी दस्तावेज होता है। यह मकान मालिक और किराएदार के बीच होता है। इसमें संपत्ति किराए पर देने की सभी शर्तें लिखी होती हैं। किराया राशि और सुरक्षा जमा जैसी बातें स्पष्ट रूप से दर्ज की जाती हैं।

यह दस्तावेज दोनों पक्षों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। किसी विवाद की स्थिति में यह अदालत में सबूत का काम करता है। इससे पारदर्शिता बनी रहती है और भ्रम की स्थिति नहीं होती। रखरखाव की जिम्मेदारियां भी स्पष्ट रूप से परिभाषित होती हैं।

ग्यारह महीने का समझौता ही क्यों

बारह महीने या उससे अधिक के समझौते के लिए पंजीकरण अनिवार्य होता है। इससे अतिरिक्त स्टांप शुल्क और पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। ग्यारह महीने का करार इन खर्चों से बचाता है। यह दोनों पक्षों के लिए सुविधाजनक विकल्प है।

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किराया बढ़ाने या समझौता समाप्त करने में कम कानूनी जटिलताएं आती हैं। यह तरीका सस्ता और सरल है। अधिकांश लोग इसी अवधि का समझौता करना पसंद करते हैं। कानूनी औपचारिकताओं में कमी इसे आकर्षक बनाती है।

लंबी अवधि के समझौते के नियम

बारह महीने से अधिक की अवधि के लिए भी करार किया जा सकता है। ऐसे समझौतों का पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है। सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में इस प्रक्रिया को पूरा करना होता है। स्टांप शुल्क भी अधिक देना पड़ता है।

लंबी अवधि का करार किराएदार को स्थिरता प्रदान करता है। मकान मालिक को निश्चित आय का आश्वासन मिलता है। लेकिन कानूनी प्रक्रियाएं अधिक जटिल हो जाती हैं। दोनों पक्षों की सहमति और आवश्यकता इस पर निर्भर करती है।

किराया समझौते के कानूनी पहलू

किराया समझौता लिखित रूप में होना चाहिए। दोनों पक्षों के हस्ताक्षर और तारीख अनिवार्य है। ग्यारह महीने से अधिक के करार का पंजीकरण जरूरी होता है। किराया राशि और सुरक्षा जमा की शर्तें स्पष्ट होनी चाहिए।

भारतीय अनुबंध अधिनियम और संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम लागू होते हैं। राज्य के किराया नियंत्रण कानूनों का पालन आवश्यक है। पंजीकरण न कराने पर कानूनी समस्याएं हो सकती हैं। सभी शर्तों का स्पष्ट उल्लेख जरूरी होता है।

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पंजीकरण न कराने से बचत

ग्यारह महीने का करार रखने से स्टांप शुल्क और पंजीकरण शुल्क की बचत होती है। इसके लिए न्यूनतम स्टांप शुल्क देना होता है। पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती। बारह महीने के करार में अतिरिक्त खर्च आता है।

लंबी अवधि के करार में स्टांप शुल्क किराया राशि के प्रतिशत के रूप में लगता है। पंजीकरण शुल्क अलग से देय होता है। यह खर्च काफी अधिक हो सकता है। इसलिए अधिकांश लोग छोटी अवधि का करार करना पसंद करते हैं।

किराया वृद्धि के नियम

किराया वृद्धि राज्य के किराया नियंत्रण कानूनों पर निर्भर करती है। समझौते की शर्तों के अनुसार भी किराया बढ़ता है। आमतौर पर आठ से दस प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि का प्रावधान होता है। इससे किराएदार पर अत्यधिक बोझ नहीं पड़ता।

कुछ समझौतों में निश्चित वृद्धि दर निर्धारित होती है। कुछ में कानूनी सीमा का पालन किया जाता है। न्यूनतम वृद्धि का कोई निश्चित नियम नहीं है। मकान मालिक महंगाई और बाजार दरों के अनुसार किराया बढ़ाते हैं।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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