Ujjain News: मध्य प्रदेश के उज्जैन में दशहरे से पहले रावण दहन की परंपरा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। अखिल भारतीय युवा ब्राह्मण समाज और महाकाल सेना ने बुधवार को रावण दहन का जमकर विरोध किया। संगठनों ने दशहरा मैदान तक वाहन रैली निकाली और मटकी फोड़कर अपना विरोध दर्ज कराया। यह समूह रावण दहन को ब्राह्मण समुदाय का अपमान मानते हैं।
विरोध प्रदर्शन की अगुवाई महाकाल सेना के अध्यक्ष महेश पुजारी ने की। उन्होंने बताया कि संगठन 20 सितंबर से ही इस परंपरा के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। शहर के कई स्थानों पर पोस्टर लगाए गए थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर देश भर में रावण दहन बंद करवाने की मांग की गई थी। यह मामला सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
महेश पुजारी ने अपने बयान में दावा किया कि रामायण में कहीं भी रावण दहन का उल्लेख नहीं मिलता है। उन्होंने कहा, “रावण दहन वो करें, जो राम की तरह हों।” विरोधियों का तर्क है कि रावण एक महान विद्वान, शिव भक्त और कई ग्रंथों के रचयिता थे। साथ ही, उन्होंने रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना में भी मदद की थी।
विरोध की वजह और उठाए गए सवाल
विरोध करने वाले समूहों ने रावण दहन करने वाली समितियों के सामने कई सवाल खड़े किए हैं। इनमें रावण को अत्याचारी साबित करने वाले सबूत मांगे गए हैं। एक सवाल यह है कि सूर्पनखा के साथ हुए व्यवहार को कैसे उचित ठहराया जा सकता है। पूछा गया है कि यदि किसी के परिवार के साथ ऐसा व्यवहार हो तो वह क्या करेगा।
एक अन्य प्रश्न धोबी की कहानी से जुड़ा है। समूह पूछते हैं कि जिस धोबी ने माता सीता के चरित्र पर संदेह जताया और उन्हें वनवास जाना पड़ा, उसके बारे में क्या किया जाना चाहिए। इन सवालों के शास्त्र सम्मत जवाब मांगे गए हैं। विरोधियों का कहना है कि जब तक जवाब नहीं मिलते, रावण दहन बंद कर देना चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं में अंतर
पारंपरिक मान्यता के अनुसार, दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध किया था। इस जीत की याद में हर साल दशहरे के दिन रावण के पुतले जलाए जाते हैं। यह परंपरा देश के कोने-कोने में निभाई जाती है और इसे एक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में देखा जाता है।
हालांकि, कुछ समुदायों में रावण को एक महान ज्ञानी और शिवभक्त के रूप में भी पूजा जाता है। उज्जैन का यह विरोध इसी अलग धार्मिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। विरोधी समूहों का मानना है कि रावण एक ब्राह्मण थे और उनका पुतला दहन करना समुदाय का अपमान है। इससे एक नए तरह के सामाजिक-धार्मिक विमर्श की शुरुआत हुई है।
स्थानीय प्रशासन और भविष्य की चुनौती
उज्जैन में दशहरा मैदान और दत्त अखाड़ा सहित कई स्थानों पर रावण दहन की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। विरोध प्रदर्शन के बाद स्थानीय प्रशासन सतर्क हो गया है। अधिकारियों को शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती का सामना है। उन्हें दोनों पक्षों के हितों और धार्मिक भावनाओं का संतुलन बनाना होगा।
यह घटना दर्शाती है कि पारंपरिक त्योहारों की व्याख्या को लेकर समाज में नए सिरे से बहस शुरू हो रही है। जहां एक ओर अधिकांश लोग दशहरे को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाना जारी रखेंगे, वहीं कुछ समूह इसकी परंपरागत प्रथाओं पर सवाल उठा रहे हैं। इस विवाद ने एक जटिल सांस्कृतिक बहस को जन्म दे दिया है।
