शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

रेलवे मुआवजा: टिकट न होने पर भी मिलेगा मुआवजा, हाई कोर्ट ने रीना देवी केस को दिया हवाला

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Maharashtra News: मुंबई की एक लोकल ट्रेन से गिरकर एक यात्री की मौत हो गई। उसके पास टिकट नहीं था, इस आधार पर रेलवे ने मुआवजा देने से मना कर दिया। हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया और परिवार को आठ लाख रुपये मुआवजा दिलाया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के रीना देवी मामले का हवाला देते हुए एक अहम फैसला सुनाया।

मामला 26 मई 2014 का है। मारोती गांधकवाड़ मरीन लाइन्स से चर्चगेट जाने के लिए लोकल ट्रेन में सवार हुए। अचानक एक जोरदार झटका आया और वह संतुलन खोकर चलती ट्रेन से नीचे गिर गए। इस हादसे में उनकी मौत हो गई। मारोती के परिवार ने रेलवे से मुआवजे की मांग की।

नागपुर के रेलवे दावा न्यायाधिकरण ने मुआवजे का दावा खारिज कर दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि मृतक के पास कोई टिकट नहीं मिला, इसलिए वह वास्तविक यात्री नहीं था। ट्रिब्यूनल ने यह भी माना कि यह घटना ‘अप्रत्याशित’ नहीं थी। परिवार ने हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की।

हाई कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को गलत बताया। न्यायाधीश एम.डब्ल्यू. चांदवानी ने कहा कि टिकट न होना मुआवजे से वंचित करने का आधार नहीं है। कोर्ट ने रेलवे की जांच रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें स्वीकार किया गया था कि मारोती एक अज्ञात ट्रेन से गिरे थे।

सुप्रीम कोर्ट के रीना देवी केस का असर

हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ‘यूनियन ऑफ इंडिया बनाम रीना देवी’ मामले के नियम को लागू किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में स्पष्ट किया था कि अगर कोई व्यक्ति ट्रेन में यात्रा करते हुए मरता है, तो यह माना जाएगा कि वह वास्तविक यात्री था। भले ही उसके पास टिकट न क्यों न हो।

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यह अनुमान रेलवे के खिलाफ मुआवजे के दावे को मजबूत करता है। रेलवे यह साबित नहीं कर पाई कि मारोती ट्रेन में यात्री नहीं थे। इसलिए टिकट न मिलने के आधार पर दावा खारिज नहीं किया जा सकता। यह फैसला ऐसे कई परिवारों के लिए एक मिसाल बन गया है।

लापरवाही का दावा भी नहीं चला

रेलवे ने हाई कोर्ट में एक और तर्क दिया। उसने कहा कि मारोती खुद ट्रेन के दरवाजे से बाहर झुक रहे थे। यह एक लापरवाही भरा कार्य था और इसी वजह से दुर्घटना हुई। इसलिए रेलवे मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार नहीं है।

हाई कोर्ट ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने रेलवे अधिनियम की धारा 124-ए का स्पष्टीकरण दिया। इस धारा के तहत ‘अप्रत्याशित घटना’ में रेलवे का दायित्व ‘सख्त’ होता है। इसमें यह देखना जरूरी नहीं है कि दुर्घटना किसकी गलती से हुई।

कब नहीं मिलता है मुआवजा?

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 124-ए के परंतुक में कुछ अपवाद बताए गए हैं। अगर मौत आत्महत्या, खुद को चोट पहुंचाने, कोई अपराध करने, नशे की हालत में या प्राकृतिक बीमारी से हुई हो, तो मुआवजा नहीं दिया जाएगा। इस मामले में ऐसा कुछ भी साबित नहीं हुआ।

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मारोती की मौत एक अप्रत्याशित दुर्घटना में हुई थी। रेलवे यह साबित नहीं कर पाई कि मौत के लिए मृतक स्वयं जिम्मेदार थे। इसलिए लापरवाही का तर्क भी मुआवजे में बाधा नहीं बन सकता। अदालत ने रेलवे के सभी तर्कों को खारिज कर दिया।

परिवार को मिला आठ लाख रुपये का मुआवजा

हाई कोर्ट ने मृतक मारोती के कानूनी वारिसों को आठ लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। यह मुआवजा तीन लोगों के बीच बांटा गया। मारोती की मां नागरबाई को तीन लाख रुपये, पिता दिगंबर को चार लाख रुपये और भाई मंगेश को एक लाख रुपये मिलेंगे।

यह अपील नागरबाई, दिगंबर और मंगेश गांधकवाड़ ने दायर की थी। उन्होंने लगभग दस साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। आखिरकार हाई कोर्ट ने उन्हें न्याय दिलाया। यह फैसला दर्शाता है कि रेलवे दुर्घटना में मौत होने पर टिकट न होना मुआवजे पाने में बाधा नहीं है।

यह मामला रेलवे मुआवजा नियमों की एक महत्वपूर्ण व्याख्या है। इसने यात्रियों के अधिकारों को मजबूत किया है। अब ऐसे मामलों में रेलवे को टिकट न होने के आधार पर दावा खारिज करना मुश्किल होगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए हाई कोर्ट ने न्याय सुनिश्चित किया।

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