India News: केंद्र सरकार ने देश के पारंपरिक कारीगरों और शिल्पियों को सशक्त बनाने के लिए एक बड़ी पहल शुरू की है। प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना का लक्ष्य उन श्रमिकों को मुख्यधारा में वापस लाना है जो वर्षों से समाज का निर्माण करते आए हैं। यह योजना उन्हें वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करेगी।
इस योजना के तहत, कारीगरों को पंद्रह दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें प्रतिदिन पांच सौ रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। यह राशि सीधे उनके बैंक खाते में जमा होती है। इससे उन्हें प्रशिक्षण अवधि के दौरान अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने में सहायता मिलती है।
कौन ले सकता है योजना का लाभ?
इस योजनाका लाभ विभिन्न पारंपरिक व्यवसायों से जुड़े लोग उठा सकते हैं। इनमें बढ़ई, लोहार, सुनार और दर्जी शामिल हैं। इसके अलावा, मोची, राजमिस्त्री, कुम्हार, नाई और धोबी भी इसके पात्र हैं। सरकार का उद्देश्य इन सभी विश्वकर्माओं को आत्मनिर्भर बनाना है।
वित्तीय सहायता और ऋण
पात्र लाभार्थियोंको एक लाख रुपये तक का ऋण बहुत कम ब्याज दर पर दिया जाता है। यह एक बेहतरीन सरकारी योजना है। यदि लाभार्थी समय पर ऋण की किश्तों का भुगतान करता है, तो उसे अगले चरण में दो लाख रुपये तक का ऋृण मिल सकता है। इससे वे अपना व्यवसाय विस्तारित कर सकेंगे।
यह वित्तीय सहायता उन्हें नए साधन खरीदने में मदद करेगी। साथ ही, वे अन्य लोगों को रोजगार देने में भी सक्षम होंगे। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। यह एक सामाजिक-आर्थिक बदलाव का कार्यक्रम है।
आधुनिक प्रशिक्षण और उपकरण
विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत सरकार आधुनिक उपकरण और तकनीकी प्रशिक्षण भी मुहैया करा रही है। इससे कारीगर बदलते बाजार के अनुरूप अपने हुनर को ढाल सकते हैं। प्रशिक्षण सफलतापूर्वक पूरा करने वाले प्रतिभागियों को पहचान पत्र और प्रमाणपत्र दिए जाते हैं।
यह प्रमाणपत्र भविष्य में सरकारी योजनाओं और बैंक ऋणों का लाभ लेने में सहायक होते हैं। इससे उन्हें आसानी से वित्तीय सेवाएं प्राप्त होती हैं। यह कदम उनकी वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करता है। यह योजना कारीगरों के जीवन में व्यापक सुधार लाने का प्रयास करती है।
ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान
सरकार ने इस योजना में ग्रामीण और छोटे कस्बों के कारीगरों पर विशेष ध्यान दिया है। पहले इन क्षेत्रों के लोगों के लिए बैंक ऋण और सरकारी सहायता प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण था। अब यह योजना उन्हें सीधा समर्थन और आर्थिक सुरक्षा प्रदान कर रही है।
यह पहल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। स्थानीय कारीगरों को उनके हुनर का उचित मूल्य दिलाना इसका प्रमुख लक्ष्य है। इससे पलायन रोकने और स्थानीय रोजगार बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह देश के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करेगी।
