India News: स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) ने एक बड़ा आदेश जारी किया है। इसके तहत फिजियोथेरेपिस्ट अब अपने नाम के आगे ‘डॉक्टर’ (डॉ.) शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। DGHS की प्रमुख डॉ. सुनीता शर्मा ने कहा कि यह कदम मरीजों में पैदा होने वाले भ्रम को रोकने के लिए उठाया गया है।
नए आदेश के मुताबिक, अब सिर्फ मेडिकल डिग्री रखने वाले चिकित्सक ही ‘डॉक्टर’ की उपाधि का प्रयोग कर सकते हैं। इसका उद्देश्य ‘क्वैकरी’ यानी नकली इलाज पर अंकुश लगाना है। DGHS को इस संबंध में कई संगठनों की ओर से शिकायतें मिली थीं।
भारतीय भौतिक चिकित्सा एवं पुनर्वास संघ (IAPMR) जैसे संगठनों ने मजबूत आपत्ति जताई थी। उनका तर्क था कि फिजियोथेरेपिस्टों को मेडिकल डॉक्टर की तरह प्रशिक्षित नहीं किया जाता। इसलिए उनका ‘डॉक्टर’ टाइटल इस्तेमाल करना आम जनता को गुमराह करना है।
कोर्ट के पहले के फैसलों का हवाला
DGHS के पत्र में कहा गया है कि कई हाई कोर्ट ने पहले ही इस मामले पर स्पष्ट राय दे दी है। पटना हाई कोर्ट, मद्रास हाई कोर्ट और बेंगलुरु कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि बिना मेडिकल रजिस्ट्रेशन के ‘डॉक्टर’ टाइटल लगाना गैरकानूनी है। इन फैसलों को नए आदेश का आधार बनाया गया है।
फिजियोथेरेपिस्टों को प्राथमिक चिकित्सा देने की अनुमति नहीं है। उन्हें सिर्फ रेफर किए गए मरीजों का ही इलाज करना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ चिकित्सा स्थितियों में गलत फिजियोथेरेपी नुकसानदायक हो सकती है।
नए पाठ्यक्रम में भी बदलाव का अनुरोध
डॉ. सुनीता शर्मा ने एक और महत्वपूर्ण अनुरोध किया है। उन्होंने कहा है कि नए Physiotherapy Curriculum 2025 में ‘डॉक्टर’ शब्द को शामिल न किया जाए। इसके बजाय ‘फिजियोथेरेपिस्ट’ जैसा स्पष्ट और सम्मानजनक टाइटल इस्तेमाल होना चाहिए। इससे मरीजों को किसी तरह की गलतफहमी नहीं होगी।
यह कदम हेल्थकेयर सेक्टर में पेशेवर पहचान को स्पष्ट करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे मरीज सही व्यक्ति से सही इलाज पाने में सक्षम होंगे। इस आदेश का देश भर के फिजियोथेरेपी पेशेवरों पर सीधा असर पड़ेगा।
