शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

पेंशनर्स विरोध: ‘पेंशन चैरिटी नहीं, हमारा संवैधानिक अधिकार है’, शिमला में भड़का आंदोलन

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Himachal News: सभी भारतीय सिविल पेंशनर्स फोरम के सदस्यों ने शिमला में बुधवार को धरना दिया। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार के प्रस्तावित पेंशन संशोधन का विरोध किया। उनकी मुख्य मांग जनवरी 2026 से पह्राम सेवानिवृत्त सभी पेंशनधारकों के लिए संशोधन और 50 प्रतिशत महंगाई राहत की बहाली है।

प्रतिनिधि जगमोहन ठाकुर ने कहा कि वित्त विधेयक के जरिए पेंशन में भेदभाव किया गया है। इस योजना के तहत जनवरी 2026 से पहले रिटायर हुए लोग लाभ से वंचित रह जाएंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि पेंशन कोई दान नहीं बल्कि संवैधानिक अधिकार है।

पेंशनधारकों ने चेतावनी दी कि उनकी मांगें न मानी गईं तो आंदोलन तेज होगा। वे कानूनी कार्रवाई और सड़कों पर प्रदर्शन का रास्ता अपनाएंगे। नौ जनवरी को शिमला में एक बड़ा धरना आयोजित करने की योजना बनाई गई है।

मुख्य आरोप और भविष्य की रणनीति

पेंशनधारकों ने आठवें केंद्रीय वेतन आयोग की शर्तों को अस्पष्ट बताया। उनका आरोप है कि यह प्रावधान भेदभावपूर्ण हैं। उन्होंने सरकार से कट-ऑफ तिथि स्पष्ट करने की मांग की। सभी पेंशनधारकों को समान लाभ मिलना चाहिए।

ठाकुर ने डीएस नकारा मामले का ऐतिहासिक निर्णय याद दिलाया। सुप्रीम कोर्ट ने 1982 में पेंशन को संवैधानिक अधिकार माना था। उन्होंने बताया कि हिमाचल में लगभग दस लाख परिवार इस मुद्दे से प्रभावित हैं।

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मामले से संबंधित एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में पहले ही दाखिल की जा चुकी है। इसकी सुनवाई पांच जनवरी को निर्धारित है। पेंशनधारक इस कानूनी लड़ाई को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

व्यापक सामाजिक प्रभाव

यह आंदोलन केवल हिमाचल प्रदेश तक सीमित नहीं है। पूरे देश के सिविल पेंशनर इस नीति परिवर्तन से प्रभावित होंगे। कट-ऑफ तिथि का निर्धारण लाखों लोगों के जीवन स्तर को प्रभावित करेगा।

पेंशनधारकों का कहना है कि यह भेदभावपूर्ण नीति है। सेवानिवृत्ति की तिथि के आधार पर लाभों में अंतर नहीं होना चाहिए। सभी पूर्व कर्मचारियों को समान व्यवहार का अधिकार है।

महंगाई राहत की बहाली उनकी दूसरी प्रमुख मांग है। मुद्रास्फीति के दबाव में पेंशन की क्रय शक्ति कम हो रही है। पचास प्रतिशत डीआर की मांग इसी संदर्भ में उठाई गई है।

कानूनी पहलू और ऐतिहासिक संदर्भ

पेंशन संबंधी विवाद नया नहीं है। विभिन्न न्यायिक निर्णयों ने इसे मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है। सरकारी नीतियां अक्सर इन अधिकारों के साथ टकराव पैदा करती हैं।

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प्रदर्शनकारियों का मानना है कि वित्त विधेयक में प्रस्तावित बदलाव असंवैधानिक हैं। ये बदलाव पेंशनधारकों के हितों के विरुद्ध हैं। उन्हें लगता है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है।

सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। पेंशनधारक कानूनी प्रक्रिया पर भरोसा जता रहे हैं। वे न्यायपालिका से न्याय की उम्मीद कर रहे हैं।

राज्य और केंद्र की भूमिका

पेंशनधारकों ने राज्य और केंद्र दोनों सरकारों के खिलाफ एकजुट संघर्ष का एलान किया है। वे मानते हैं कि यह लड़ाई सभी पेंशनभोगियों के हित में है। सामूहिक शक्ति से ही वे अपने अधिकार सुरक्षित कर पाएंगे।

शिमला का धरना इस लंबी लड़ाई का एक चरण मात्र है। भविष्य में और भी आक्रामक प्रदर्शन हो सकते हैं। पेंशनधारक अपनी मांगों को लेकर गंभीर हैं।

यह मुद्दा केवल आर्थिक नहीं है। यह सम्मान और गरिमा का प्रश्न भी बन गया है। पूर्व कर्मचारी अपने योगदान के लिए उचित मान्यता चाहते हैं। उनकी सेवाओं को कम आंका नहीं जाना चाहिए।

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