शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

पटियाला हाउस कोर्ट: राम मंदिर फैसले को चुनौती देने वाले वकील पर 6 लाख का जुर्माना

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Delhi News: पटियाला हाउस कोर्ट ने अयोध्या राम मंदिर के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने याचिका दायर करने वाले वकील महमूद प्राचा पर छह लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। जिला जज धर्मेंद्र राणा ने इस याचिका को फिजूल, भ्रामक और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करार देते हुए कड़ी टिप्पणी की।

अदालत ने कहा कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो स्थिति चिंताजनक हो जाती है। न्यायालय ने यह टिप्पणी वकील की कार्रवाई पर करते हुए कहा कि एक वरिष्ठ वकील से इस तरह की लापरवाही की उम्मीद नहीं की जाती। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि इस तरह की बेबुनियाद याचिकाओं पर सख्ती बरतना जरूरी है।

ऐसा करने से न्यायपालिका के कीमती समय और संसाधनों की बचत होती है। अदालत ने माना कि यह मामला जज प्रोटेक्शन एक्ट, 1985 के दायरे में आता है। इस कानून के तहत किसी न्यायाधीश को उसके न्यायिक कार्यों के लिए सिविल या आपराधिक कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान की गई है।

पटियाला हाउस कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें वकील पर जुर्माना लगाया गया था। हालांकि जुर्माने की राशि को एक लाख रुपये से बढ़ाकर छह लाख रुपये कर दिया गया। अदालत ने कहा कि न्यायपालिका की गरिमा और पवित्रता बनाए रखना सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।

जिला जज धर्मेंद्र राणा ने अपने आदेश में कहा कि महमूद प्राचा द्वारा दायर की गई याचिका न केवल तथ्यों से परे है बल्कि यह न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाती है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने अयोध्या मामले के फैसले को पूरी तरह से पढ़ा ही नहीं है।

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जस्टिस चंद्रचूड़ के भाषण का गलत अर्थ

याचिका में वकील महमूद प्राचा ने दावा किया था कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक भाषण में कहा था कि अयोध्या का फैसला भगवान श्रीराम लला द्वारा दिए गए समाधान पर आधारित था। पटियाला हाउस कोर्ट ने इस दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया।

अदालत ने स्पष्ट किया कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने केवल इतना कहा था कि उन्होंने भगवान से मार्गदर्शन की प्रार्थना की थी। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि उन्हें किसी पक्ष से कोई समाधान प्राप्त हुआ है। न्यायालय ने कहा कि वकील ने ईश्वर और कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त देवता के बीच का अंतर समझे बिना ही याचिका दायर कर दी।

इस भ्रामक दावे के आधार पर वकील ने अयोध्या के ऐतिहासिक फैसले को पलटने की मांग की थी। अदालत ने माना कि यह मामला केवल प्रचार और गलतफहमी फैलाने के उद्देश्य से दायर किया गया प्रतीत होता है। इस कारण न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हुआ है।

न्यायिक प्रणाली पर दबाव

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह की बेबुनियाद याचिकाएं न्यायिक प्रणाली पर अनावश्यक दबाव डालती हैं। ये मामले न्यायाधीशों का कीमती समय बर्बाद करते हैं और गंभीर मामलों की सुनवाई में बाधा उत्पन्न करते हैं। इसलिए ऐसे मामलों में दंडात्मक कार्रवाई आवश्यक हो जाती है।

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जुर्माने की राशि बढ़ाने के पीछे अदालत का उद्देश्य एक संदेश देना था। यह संदेश है कि न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। न्यायालय ने जिम्मेदारी का संकेत देते हुए कहा कि वकीलों को अपनी कार्रवाइयों के प्रति अधिक सतर्क रहना चाहिए।

यह मामला न्यायिक व्यवस्था की अखंडता को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानूनी पेशे से जुड़े लोगों को न्यायपालिका के प्रति अपनी जिम्मेदारी का ध्यान रखना चाहिए। इससे जनता का विश्वास न्याय प्रणाली में बना रहता है।

भविष्य के लिए संकेत

यह फैसला भविष्य में इसी तरह की फिजूल याचिकाओं को दायर करने से रोकने के लिए एक मिसाल के तौर पर काम करेगा। पटियाला हाउस कोर्ट का यह कदम न्यायिक समय के सम्मान को दर्शाता है। यह दिखाता है कि अदालतें फिजूलखर्ची वाली कानूनी कार्रवाई को गंभीरता से ले रही हैं।

न्यायालय ने वकील के कदम को न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास को कमजोर करने का प्रयास बताया। अदालत ने कहा कि ऐसे कृत्यों से न केवल न्यायालय का समय बर्बाद होता है बल्कि आम जनता की न्याय तक पहुंच भी प्रभावित होती है। इसलिए सख्त कार्रवाई जरूरी थी।

यह मामला कानूनी पेशे से जुड़े सभी लोगों के लिए एक सबक के रूप में सामने आया है। इससे पता चलता है कि न्यायालय लापरवाह और बेबुनियाद कानूनी कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं करेगी। न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान हर नागरिक का कर्तव्य है।

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