International News: पांडा दुनिया के सबसे प्यारे जानवरों में गिने जाते हैं। यह काले-सफेद रंग के भालू चीन के मूल निवासी हैं। एक हैरान करने वाला तथ्य यह है कि दुनिया का हर पांडा चाहे वह किसी भी देश में पैदा क्यों न हो, चीन की संपत्ति माना जाता है। चीन की यह अनोखी नीति पांडा डिप्लोमेसी के नाम से जानी जाती है।
चीन पांडा को कूटनीति का हिस्सा मानता है। वह अन्य देशों को पांडा उपहार में नहीं देता बल्कि किराए पर देता है। हर साल दस लाख डॉलर का किराया लिया जाता है। विदेशों में जन्मे पांडा शावक भी चीन की संपत्ति बने रहते हैं।
क्या है पांडा डिप्लोमेसी?
पांडा डिप्लोमेसी चीन की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके तहत चीन अन्य देशों को पांडा उधार देता है। यह व्यवस्था दस साल या तय उम्र तक के लिए होती है। पांडा के किराए से प्राप्त राशि पांडा संरक्षण परियोजनाओं पर खर्च की जाती है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की 2013 की रिसर्च के अनुसार चीन इससे भारी आय अर्जित करता है। पांडा वाले देशों के चिड़ियाघरों में पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है। चीन द्वारा तय शर्तों का पालन करना अनिवार्य होता है।
मालिकाना हक का कानून
चीन की नीति के अनुसार कोई भी पांडा चाहे विदेश में पैदा हो या वहां पले, उस पर चीन का ही अधिकार रहता है। 2014 की गणना के मुताबिक दुनिया में लगभग 1900 पांडा थे। इनमें से करीब 400 पांडा चिड़ियाघरों या प्रजनन केंद्रों में रहते हैं।
लगभग 50 पांडा चीन से बाहर अन्य देशों में हैं। विदेश में जन्मे हर पांडा शावक को दो-तीन साल की उम्र में चीन वापस भेज दिया जाता है। इस नीति का पालन सभी देशों को करना होता है। कोई भी अपवाद स्वीकार नहीं किया जाता।
इतिहास में पांडा डिप्लोमेसी
पांडा डिप्लोमेसी की शुरुआत आधुनिक दौर में 1956 में हुई। चीन ने सोवियत संघ को पिंगपिंग नाम का पांडा दिया था। 1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की चीन यात्रा के दौरान चीन ने अमेरिका को दो पांडा दिए। इसके बाद कई देशों ने पांडा की मांग शुरू कर दी।
1984 में चीन ने अपनी नीति में बदलाव किया। उसने पांडा को उपहार देने के बजाय किराए पर देना शुरू कर दिया। प्राचीन समय में तांग राजवंश के दौरान 685 में जापान को पांडा उपहार में दिए जाने के उदाहरण मिलते हैं।
आर्थिक पहलू
पांडा डिप्लोमेसी चीन के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक है। प्रति पांडा सालाना दस लाख डॉलर का किराया लिया जाता है। इसके अलावा पांडा के रखरखाव और देखभाल की जिम्मेदारी मेजबान देश की होती है। पांडा के लिए विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है।
चिड़ियाघरों को पांडा के लिए विशेष बांस का प्रबंध करना होता है। पांडा देखने आने वाले पर्यटकों से प्राप्त आय मेजबान देश को मिलती है। इससे चिड़ियाघरों की आमदनी में वृद्धि होती है। पांडा कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने का काम भी करते हैं।
वर्तमान स्थिति
वर्तमान में कई देश चीन से पांडा किराए पर लेते हैं। इनमें अमेरिका, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देश शामिल हैं। हर देश के साथ एक निश्चित समय सीमा के लिए अनुबंध होता है। अनुबंध समाप्त होने पर पांडा को चीन वापस लौटाना होता है।
पांडा संरक्षण कार्यक्रमों में इन फंडों का उपयोग किया जाता है। चीन में पांडा के प्राकृतिक आवासों को बचाने का काम चल रहा है। शोध और प्रजनन कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। पांडा की संख्या में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है।
