Spiritual News: हिंदू धर्म में पंचमुखी हनुमान जी की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मंगलवार और शनिवार को इस पूजा का श्रेष्ठ समय माना जाता है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, अमावस्या और ग्रहण काल में भी इसकी विशेष महिमा है। यह पूजा शत्रु बाधा निवारण और आर्थिक संकट दूर करने में सहायक मानी जाती है।
पंचमुखी हनुमान जी के स्वरूप में पांच मुख हैं जो अलग-अलग दिशाओं और शक्तियों के प्रतीक हैं। पूर्व दिशा का वानर मुख बल और पराक्रम का प्रतिनिधित्व करता है। दक्षिण दिशा का नरसिंह मुख शत्रु भय का विनाश करता है। पश्चिम दिशा का गरुड़ मुख विष और रोगों से रक्षा प्रदान करता है।
उत्तर दिशा का वराह मुख संपत्ति और परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। ऊर्ध्व दिशा का हयग्रीव मुख ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इन पांच मुखों की आराधना से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
पूजा का विधान
पूजा के लिए स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करने का विधान है। दक्षिणमुखी होकर बैठना चाहिए और पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष दीपक जलाना चाहिए। चंदन, रोली और सिंदूर से पूजा की जाती है। लाल फूल और गुड़-चना का भोग लगाया जाता है।
हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करना शुभ माना जाता है। विशेष रूप से पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ अत्यंत फलदायी बताया गया है। पूजा के बाद शत्रु निवारण और भय मुक्ति की प्रार्थना की जाती है। इससे व्यक्ति को साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।
मंगलवार को की गई पूजा आत्मबल और शत्रु पर विजय दिलाती है। शनिवार की पूजा शनि दोष और पितृदोष से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। अमावस्या की रात्रि में कवच पाठ का विशेष महत्व है।
ग्रहण काल में पंचमुखी हनुमान मंत्र के जप से अकाल मृत्यु और तांत्रिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है। व्यक्तिगत संकट के समय में भी इस पूजा का विधान किया जाता है। निरंतर विफलता, घरेलू कलह या नजर दोष होने पर इसका विशेष प्रभाव देखने को मिलता है।
न्यायिक मामलों, कर्ज और शत्रु बाधा में यह पूजा लाभकारी सिद्ध होती है। मानसिक तनाव और भय से ग्रस्त व्यक्तियों को विशेष रूप से इसका अनुष्ठान करना चाहिए। आधुनिक समय में यह पूजा विद्यार्थियों और व्यापारियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो रही है।
