Faisalabad News: पाकिस्तान की आर्थिक हालत पर लगातार चल रही बहसों ने एक बार फिर से जोर पकड़ा है। देश के नेतृत्व द्वारा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मदद की अपील करना एक सामान्य बात हो गई है। हाल के दिनों में, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज की उपाध्यक्ष मरियम नवाज ने एक सार्वजनिक रैली में दिए गए अपने बयानों से विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने बाढ़ राहत कार्यों पर उठ रहे सवालों के जवाब में आक्रामक लहजा अख्तियार किया। इस घटना ने देश की चल रही गंभीर आर्थिक चुनौतियों पर एक नई बहस छेड़ दी है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कई दशकों से गंभीर संकट का सामना कर रही है। आंकड़े बताते हैं कि देश पर विदेशी कर्ज का बोझ 130 अरब डॉलर से अधिक है। इसकी विदेशी मुद्रा भंडार भी काफी कमजोर स्थिति में है। जून 2023 के अंत में यह भंडार लगभग 14.5 अरब डॉलर था, जिसमें से अधिकांश राशि पुराने कर्ज के पुनर्वित्त से आई थी। यह स्थिति देश की वित्तीय कमजोरी को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
आईएमएफ और विश्व बैंक पर निर्भरता
इन चुनौतियों से निपटने के लिए, पाकिस्तान अक्सर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं की ओर रुख करता है। हाल ही में, आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड ने पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर की त्वरित राशि जारी करने की अनुमति दी। यह राशि आईएमएफ की विस्तारित कोष सुविधा का हिस्सा है, जो दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के लिए ऋण प्रदान करती है। पाकिस्तान ने पिछले 35 वर्षों में आईएमएफ से 28 बार ऋण लिया है।
मित्र देशों से वित्तीय सहायता
अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए पाकिस्तान कई मित्र देशों से भी सहायता प्राप्त करता है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने चीन को पाकिस्तान का “सबसे परखा हुआ दोस्त” बताया है। चीन ने पाकिस्तान को लगभग 4 अरब डॉलर का ऋण दिया है, जिस पर 6% ब्याज देना पड़ रहा है। सऊदी अरब ने पाकिस्तान के केंद्रीय बank में लगभग 5 अरब डॉलर जमा कराए हैं। संयुक्त अरब अमीरात और तुर्किये जैसे देश भी पाकिस्तान के प्रमुख वित्तीय सहयोगियों में शामिल हैं।
भारत की सुरक्षा चिंताएं
पाकिस्तान को मिलने वाली इस वित्तीय सहायता पर पड़ोसी देश भारत ने गंभीर चिंता जताई है। भारत ने आईएमएफ को स्पष्ट रूप से बताया है कि पाकिस्तान द्वारा पिछले ऋणों का दुरुपयोग किया गया है। भारत का मानना है कि यह धनराशि आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण में इस्तेमाल हो सकती है। भारत ने दुनिया को चेतावनी दी है कि पाकिस्तान की मदद करने वाले देशों को भी इसके परिणामों के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।
आर्थिक संकट के मूल कारण
पाकिस्तान की आर्थिक समस्याओं के पीछे कई गहरे संरचनात्मक कारण हैं। देश की सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर स्थिर बनी हुई है, जो 2023 में 338 बिलियन डॉलर थी। मुद्रास्फीति लगातार पांच वर्षों तक दोहरे अंकों में बनी हुई है और 2024 में यह 23.4% तक पहुंच गई। देश में बचत और निवेश की दर कम है, बुनियादी ढांचा कमजोर है, और वित्तीय प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता है।
राजनीतिक स्वीकारोक्ति
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने स्वयं देश की आर्थिक स्थिति पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अब दुनिया के सामने “भीख का कटोरा” लेकर नहीं, बल्कि व्यापार और निवेश के लिए समान साझेदार के रूप में खड़ा होना चाहता है । उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वह और सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर आर्थिक बोझ उठाने वाले “आखिरी लोग” हैं। यह बयान देश की गंभीर आर्थिक स्थिति का संकेत देता है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मिलने वाली अंतरराष्ट्रीय सहायता के बावजूद, देश के सामने आर्थिक स्थिरता लाने की चुनौती बनी हुई है। संरचनात्मक सुधारों को लागू करना, राजस्व बढ़ाना और उत्पादक क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करना देश की प्राथमिकता होनी चाहिए। बिना ठोस सुधारों के, वित्तीय सहायता केवल एक अस्थायी समाधान प्रदान कर सकती है। पाकिस्तान का आर्थिक भविष्य इन चुनौतियों से निपटने की उसकी क्षमता पर निर्भर करेगा।
