Himachal News: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के एक ताजा आदेश ने शिमला के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कुफरी-महासू पीक की दशा बदल कर रख दी है। एनजीटी ने यहां पर्यटन गतिविधियों पर अंकुश लगाते हुए रोजाना सिर्फ 2232 सैलानियों और 293 घोड़ों की अनुमति देने का फैसला किया है। यह फैसला पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से तो सराहनीय है, लेकिन इससे स्थानीय घोड़ा मालिकों और टूरिस्ट गाइडों की रोजी-रोटी गहरे संकट में पड़ गई है।
आजीविका पर गहराता संकट
एनजीटीके आदेश का सीधा असर स्थानीय लोगों की आमदनी पर पड़ेगा। अब तक इस रूट पर 1500 से ज्यादा घोड़े चल रहे थे, जिनकी संख्या घटकर अब महज 293 रह गई है। इससे करीब 700 घोड़ा मालिक सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। इनकी आय में 60 से 70 प्रतिशत तक की गिरावट आने का अनुमान है। कई परिवारों के सामने आर्थिक तंगी और बेरोजगारी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है।
गाइडों के सामने रोजगार का संकट
करीब 1000 स्थानीय टूरिस्ट गाइड भीइस आदेश से प्रभावित हुए हैं। ये गाइड घुड़सवारी कराने, फोटोग्राफी करवाने और सैलानियों को प्राकृतिक स्थलों की जानकारी देने का काम करते थे। पर्यटकों की संख्या सीमित होने से अब उनके काम के अवसर भी drastically कम हो जाएंगे। बहुत से गाइडों को अब वैकल्पिक रोजगार की तलाश करनी पड़ सकती है।
स्थानीय लोगों की चिंता और सुझाव
घोड़ा मालिक और गाइड पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझते हैं, लेकिन वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। घोड़ा मालिक शिवसिंह और गाइड सुदेश कुमार जैसे लोगों का कहना है कि सरकार को उनके लिए वैकल्पिक रोजगार के रास्ते तलाशने चाहिए। उनका सुझाव है कि सरकार कुफरी या आसपास के क्षेत्रों में नए घोड़ा सफारी पॉइंट विकसित करे, ताकि स्थानीय लोगों की जीविका चलती रहे।
सरकार पर नियमावली तैयार करने का दबाव
एनजीटी ने अपने आदेश में हिमाचल प्रदेश सरकार को तीन माह के भीतर पर्यावरण संरक्षण और पर्यटन नियंत्रण नियमावली तैयार करने का निर्देश दिया है। इस नियमावली में पर्यावरण की रक्षा, कचरा प्रबंधन, घोड़ा चलाने के नियम, सैलानियों की संख्या निर्धारण और पारिस्थितिक संतुलन के लिए ठोस दिशानिर्देश शामिल किए जाने हैं।
कुफरी की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
इस फैसले से कुसम्पटी और ठियोग विस क्षेत्र की ददास, चियोग, बन्नी समेत आसपास की कई पंचायतों के हजारों लोग प्रभावित होंगे। करीब पांच से सात हजार लोग, जिनमें टूरिस्ट गाइड, होटल-ढाबा चलाने वाले, घोड़ा कारोबारी और छोटे दुकानदार शामिल हैं, कुफरी में कारोबार कर अपनी आजीविका चलाते हैं। उनका कहना है कि अगर स्थिति यही रही तो कुफरी की स्थानीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा सकती है।