Nepal News: नेपाल में अंतरिम सरकार की वैधता और संसद भंग होने से पैदा हुए संवैधानिक संकट पर भारत ने गंभीर चिंता जताई है। भारतीय सरकारी सूत्रों का मानना है कि काठमांडू में पैदा हुआ यह सत्ता का शून्य चीन द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है। भारतीय एजेंसियों को आशंका है कि चुनाव में देरी या न्यायिक गतिरोध से भारत विरोधी ताकतों को फायदा मिलेगा।
यह संवैधानिक टकराव तब शुरू हुआ जब राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने अंतरिम सरकार की सिफारिश पर प्रतिनिधि सभा भंग कर दी। इस कदम ने निचले सदन का कार्यकाल समय से पहले समाप्त कर दिया और नए चुनावों की जरूरत पैदा कर दी। राजनीतिक दलों और संवैधानिक विशेषज्ञों ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि अंतरिम सरकार के पास संसद भंग करने की सिफारिश करने का अधिकार ही नहीं था।
मामला अब नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है। मुख्य न्यायाधीश प्रकाश मान सिंह राउत की अध्यक्षता में एक संवैधानिक पीठ का गठन किया गया है। इस पीठ के समक्ष कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की नियुक्ति को असंवैधानिक बताया गया है।
याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में तीखे तर्क रखे। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश को प्रधानमंत्री नियुक्त करना संविधान के अनुच्छेद 132(2) का उल्लंघन है। उनका यह भी तर्क था कि राष्ट्रपति का संसदीय सिफारिश के बिना अंतरिम सरकार बनाना अनुच्छेद 74 और 76 के विपरीत है।
एडवोकेट प्रेम राज सिलवाल ने कहा कि इस सरकार में चुनाव कराने की वैधता और इरादे की कमी है। एडवोकेट टीकाराम भट्टाराई ने राष्ट्रपति पर संवैधानिक सीमाओं से बाहर जाने का आरोप लगाया। उन्होंने अदालत से सरकार की शक्तियों को सीमित करने का अनुरोध किया।
अन्य वकीलों ने सुशीला कार्की की नैतिक असंगति और कानूनी अपात्रता पर सवाल उठाए। उन्होंने एक गैर-सांसद द्वारा संसद भंग करने की स्थिति को बेतुका बताया। न्यायमूर्ति सपना प्रधान मल्ला ने वकीलों से अंतरिम आदेश पर ध्यान केंद्रित करने को कहा।
न्यायमूर्ति कुमार रेगमी ने पूछा कि जब सरकार बन चुकी है तो कोई अन्य प्रशासन बनाने का प्रयास क्यों नहीं किया गया। संवैधानिक पीठ अब अंतरिम आदेश पर फैसला करेगी। न्यायालय ने राष्ट्रपति पौडेल और प्रधानमंत्री कार्की से उनके फैसलों का संवैधानिक आधार मांगा है।
भारत की मुख्य चिंताएं
भारत की प्रमुख चिंता यह है कि नेपाल में सत्ता का यह शून्य चीन द्वारा भरा जा सकता है। भारतीय सूत्रों के अनुसार, एजेंसियों को डर है कि अस्थिरता जारी रहने पर सीमा प्रबंधन प्रभावित होगा। सीमा पार व्यापार और खुफिया सहयोग पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।
भारतीय एजेंसियों का मानना है कि चीन न्यायिक और नौकरशाही माध्यमों से लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर सकता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति पौडेल का पूर्व मुख्य न्यायाधीश को अंतरिम सरकार सौंपना राजनीतिक कब्जे को दर्शाता है। यह नेपाल में संवैधानिक व्यवस्था की कमजोरी का संकेत है।
नेपाल में यह राजनीतिक अनिश्चितता देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। विकास परियोजनाओं और निवेश के माहौल पर इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी भी इस स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं।
नेपाल का यह संवैधानिक संकट देश के लोकतांत्रिक इतिहास में एक नाजुक मोड़ है। सर्वोच्च न्यायालय का आगामी फैसला देश की राजनीतिक दिशा तय करेगा। पूरा क्षेत्र इस मामले के परिणामों की प्रतीक्षा कर रहा है।
