Himachal News: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित विश्व विख्यात नैना देवी मंदिर में एक ऐतिहासिक जीर्णोद्धार कार्य चल रहा है। मंदिर में मौजूद लगभग 1800 साल पुराने हवन कुंड को उसके मूल स्वरूप में लौटाया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि इसके निर्माण में सीमेंट या किसी केमिकल का उपयोग नहीं हो रहा है। इस धरोहर को बचाने के लिए उड़द की दाल, मेथी और चूने जैसे पारंपरिक मिश्रण का इस्तेमाल किया जा रहा है।
राजस्थान के विशेषज्ञ कर रहे हैं काम
इस प्राचीन हवन कुंड को संरक्षित करने का जिम्मा इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (INTACH) को मिला है। संस्था ने राजस्थान से विशेष कारीगरों को बुलाया है। यह टीम कंक्रीट का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं कर रही है। वे माह की दाल की पीठी, बेल गिरी का चूरा, चूना और मेथी के घोल से इसे तैयार कर रहे हैं। यह तकनीक सदियों पुरानी है और बेहद मजबूत मानी जाती है।
अगले 50 सालों तक सुरक्षित रहेगी धरोहर
मंदिर न्यास के अध्यक्ष और एसडीएम धर्मपाल ने बताया कि धरोहर के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ नहीं की गई है। विशेषज्ञों की देखरेख में इसे अगले 50 सालों के लिए सुरक्षित किया जा रहा है। बिलासपुर के जिलाधिकारी राहुल कुमार के अनुसार, यह कार्य पूरी तरह पारंपरिक है। इसका उद्देश्य प्राचीन संस्कृति को बचाना और श्रद्धालुओं की आस्था को सम्मान देना है। यह हवन कुंड अब पहले से अधिक मजबूत होगा।
