India News: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने वैश्विक व्यापार के लिए संतुलित दृष्टिकोण की वकालत की। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पूरी तरह से स्वैच्छिक होना चाहिए और किसी भी प्रकार के दबाव या चालबाजी से मुक्त होना चाहिए। भागवत नई दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला में बोल रहे थे।
आत्मनिर्भरता पर जोर
भागवत ने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी के सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि आत्मनिर्भरता का अर्थ आयात बंद करना नहीं है। दुनिया परस्पर निर्भरता से चलती है इसलिए निर्यात-आयात जारी रहेगा। हालांकि इसमें किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए।
स्थानी व्यवसायों का समर्थन
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि स्वदेशी का मतलब है उन वस्तुओं का आयात न करना जो हमारे पास पहले से हैं या हम आसानी से बना सकते हैं। हमें हमेशा स्थानीय व्यवसायों का समर्थन करना चाहिए। बाहर से सामान लाने से स्थानीय विक्रेताओं को नुकसान होता है।
वैश्विक मुद्दों पर विचार
भागवत ने वर्तमान वैश्विक स्थिति पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि शांति, पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक असमानता पर चर्चाएं जारी हैं। इनके समाधान के लिए प्रामाणिक रूप से सोचना और विचार-विमर्श करना आवश्यक है।
भारत के अंतर्राष्ट्रीय आचरण की प्रशंसा
भागवत ने भारत के अंतर्राष्ट्रीय आचरण की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारत ने विपरीत परिस्थितियों में भी हमेशा संयम बरता है। जिन लोगों ने नुकसान पहुंचाया, उनकी संकट में मदद की। दुश्मनी व्यक्तिगत और राष्ट्रीय अहंकार से पैदा होती है।
नैतिक व्यवहार का महत्व
उन्होंने भारतीय समाज से दुनिया के लिए आदर्श बनने का आग्रह किया। नैतिक व्यवहार और मापा गया उत्तर विश्वसनीयता और विश्वास का निर्माण कर सकता है। भागवत ने कहा कि संघ की प्रतिष्ठा लगातार सेवा और सामाजिक प्रतिबद्धता में निहित है।
