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गुरूवार, जून 1, 2023
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हिमाचल में डिप्रेशन का शिकार हो रहे नाबालिग बच्चे, 5 महीनों में 151 ने की आत्महत्या की कोशिश

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Himachal Pradesh News: आधुनिक युग में डिप्रेशन की समस्या लगातार बढ़ती चली जा रही है. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के युवा भी डिप्रेशन से अछूते नहीं है. युवाओं के बीच डिप्रेशन इतना हावी है कि इससे युवा आत्महत्या तक करने की कोशिश कर चुके हैं. यही नहीं, छोटे बच्चे भी मानसिक दबाव के चलते जहर खाकर जान देने की कोशिश कर रहे हैं.

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हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में जनवरी महीने से लेकर अब तक 151 मामले ऐसे सामने आए हैं, जिन्होंने जहर खाकर अपनी जान देने की कोशिश की है. चिंता का विषय यह है कि इन 151 लोगों में 28 बच्चे भी शामिल हैं. जानकारी के मुताबिक, जहर खाने की मुख्य वजह नशा और डिप्रेशन ही है. आईजीएमसी में मनो चिकित्सक विशेषज्ञ और डिप्टी एमएस डॉ. प्रवीण भाटिया ने बताया है कि इन दिनों लोग मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या करने की कोशिश कर रहे हैं.

5 महीने में 151 मामले

इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में सामने आए जहर खाने के 151 मामलों में 70 पुरुष, 53 महिलाएं, 15 नाबालिग लड़के और 13 नाबालिग लड़कियां शामिल हैं. डॉक्टर भी मानसिक दबाव के चलते आत्महत्या की कोशिश के मामलों के चलते चिंता में हैं. डॉ. भाटिया ने बताया कि जहर खाकर जान देने की कोशिश करने के मुख्य कारण वित्तीय नुकसान के साथ पढ़ाई में अच्छा न कर पाने और नौकरी चले जाने का डर है. इसके अलावा घरेलू मामले भी मानसिक दबाव की वजह बनते हैं और दबाव में आकर मरीज जान देने की कोशिश करता है.

विड्रॉल पेन से मरीज परेशान

इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में विड्रोल पेन के भी मामले सामने आए हैं. विड्रॉल पेन में शख्स नशा छोड़ने की कोशिश तो करता है, लेकिन नशे का आदि होने की वजह से वह इसे छोड़ नहीं पाता. नशे के इस स्टेज पर पहुंचने के बाद व्यक्ति की आंख से पानी आना, बदन दर्द, कमर दर्द और नसों में तनाव रहता है. मरीज को खुद महसूस होता है कि वह नशा तो छोड़ना चाहता है, लेकिन उसका शरीर इसमें उसका साथ नहीं देता. डॉ. प्रवीण भाटिया ने बताया कि विड्रॉल पेन के चलते 72 घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचकर इलाज कराना जरूरी है. नशा छुड़वाने का डॉक्टरी इलाज संभव है.

मानसिक तनाव से कैसे रहें दूर?

मानसिक तनाव की सबसे बड़ी वजह हमारे मस्तिष्क में चलने वाली नकारात्मक सोच होती है. जब भी मन में नकारात्मक विचार आए, तो किसी बड़े या अपने करीबी से बात किया जाना सबसे महत्वपूर्ण होता है. किसी और के साथ अपने जीवन की तुलना करते हुए भी व्यक्ति मानसिक तनाव का शिकार होता है. ऐसे में जरूरी है कि व्यक्ति आगे बढ़ने की चाह में मन-मस्तिष्क में संतुष्टि का भाव भी लेकर चले. मानसिक दबाव की स्थिति में खुद कोई भी दवा लेने से पहले नौकरी परामर्श बेहद जरूरी है. घर के बड़ों के लिए यह जरूरी है कि अपने बच्चों की किसी दूसरे बच्चे के साथ तुलना न करें. पढ़ाई के लिए सकारात्मकता से बच्चों को आगे बढ़ाएं.

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