Mindful Parenting Benefits: बात जब बच्चों के बेहतर परवरिश की आती है तो इस बात को सबसे अहम माना जाता है कि आप बच्चों को बेहतर इंसान बनने में कितना मदद कर पा रहे हैं. माइंडफुल पैरेंटिंग एक खाास तरह का पैरेंटिंग स्टाइल है, जिसमें माता-पिता और बच्चे के बीच बेहतर बॉन्डिंग रहती है और हर तरह का संवाद उनके बीच होता है.
यही नहीं, बच्चों को इस बात का डर नहीं रहता कि कहीं पैरेंट्स उन्हें जज तो नहीं करेंगे, इस तरह वे अपने पैरेंट्स से इमोशनली कनेक्टेड रहते हैं और उनकी हर बात समझने और अपनाने का भी प्रयास करते हैं. इस तरह माता-पिता के लिए भी बच्चों की हर बात को समझने और उनके आसपास की जानकारी हासिल करने में परेशानी नहीं होती और वे बेहतर तरीके से उन्हें गाईड भी कर पाते हैं. इस तरह माइंडफुल पैरेंटिंग का मुख्य उद्देश्य अपने बच्चों को बेहतर तरीके से विकसित होने में मदद करना है, इसके लिए माता-पिता बच्चों को हर तरह का समर्थन देने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने पर विशेष फोकस रखते हैं.
माइंडफुल पैरेंटिंग का क्या है तरीका
हेल्थलाइन के मुताबिक, माइंडफुल पैरेंटिंग के मुख्य 3 बिंदु होते हैं- पहला, यह जानकारी होना कि फिलहाल क्या परेशानियां हैं या क्या हालात है. दूसरा, उनके बर्ताव को समझने का प्रयास करना, जबकि तीसरा है प्रतिक्रिया के रूप में नॉनजजमेंटल रहना, दयालू होना और सच को एक्सेप्ट करना. इन गुणों के लिए किसी भी माता-पिता के अंदर 5 गुण होना जरूरी है.
पैरेंट्स अपने बच्चे की हर बात को ध्यान से सुनें और उनके आसपास के माहौल के बारे में हर बात जानें. इसके लिए पेशेंस और प्रैक्टिस की जरूरत होती है.
-अपने बच्चे से जरूरत से अधिक उम्मीद नहीं रखें और अपनी या बच्चे की भावनाओं को प्रैक्टिल होकर बिना किसी जजमेंट के स्वीकारें.
– अपने और बच्चे के इमोशन को महत्व दें और कुछ ऐसा ना करें जिससे उसकी भावनाएं आहत हों. बच्चों के साथ आप जितना अधिक भावनात्मक रूप से जुड़े होंगे, वे आपकी बातों को बेहतर तरीके से मानेंगे.
सेल्फ रेगुलेशन जरूरी है. इस तरह आप अपने बर्ताव के बारे में एक बार सोचें उसके बाद ही बच्चे से कुछ कहें या उनके साथ बर्ताव करें. मसलन, चिल्ला तो नहीं रहे आप.
माइंडफुल पैरेंटिंग के फायदे
-बच्चे और माता-पिता के बीच बेहतर बातचीत और संचार हो पाता है.
-बच्चों में हाइपर एक्टिविटी जैसे लक्षण में कमी आती है.
-माता-पिता अधिक संतुष्ट रहते हैं और उन्हें पैरेंटिंग आसान काम लगता है.
-बच्चों में आक्रामकता कम होती है और वे अवसाद की भावना से दूर रहते हैं.
-माता-पिता और बच्चों में तनाव और चिंता कम होती है.
-माता-पिता बच्चों के परवरिश में भागीदारी बन पाते हैं.
उदाहरण से समझें
किसी गलती के बाद अगर आपका बच्चा लगातार रो रहा है या परेशान है या आपसे बात कह नहीं पा रहा तो उसे प्यार से गले लगाएं और कुछ देर उसकी पीठ सहलाते हुए प्यार करें. आप उसे कहें कि गलतियां तो सब से हो सकती हैं और मुझे विश्वास है कि आप अपनी गलतियों से कुछ अच्छा ही सीखे होंगे. भावनात्मक बातें बच्चों पर जादू की तरह काम करता है और इस तरह बच्चे कभी गलति नहीं दोहराएंगे. हो सकता है कि आपको बहुत गुस्सा आ रहा हो या आप मेंटली परेशान हों, लेकिन गहरी सांस लें और बात को सम्हालने का प्रयास करें.