शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

सैन्य नींद पद्धति: क्या वाकई 2 मिनट में आती है नींद? वैज्ञानिक तथ्य जानें

Share

Science News: सैन्य नींद पद्धति एक बार फिर चर्चा में है। यह तकनीक सैनिकों को किसी भी परिस्थिति में तेजी से सोने में मदद करती है। अब आम लोग भी इसका उपयोग कर रहे हैं। यह विधि 1981 की किताब रिलैक्स एंड विन पर आधारित है।

नींद संबंधी समस्याओं के बढ़ने के साथ यह तकनीक लोकप्रिय हो रही है। यह तनावपूर्ण जीवनशैली वाले लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी मानी जा रही है। विशेषज्ञ इसकी प्रभावशीलता पर शोध कर रहे हैं।

क्या है सैन्य नींद पद्धति

यह विधि तीन मुख्य चरणों में पूरी होती है। पहले चरण में चेहरे की मांसपेशियों को ढीला छोड़ना होता है। फिर धीरे-धीरे बाहों, छाती और पैरों की मांसपेशियों को शिथिल करना होता है। यह सब गहरी और स्थिर सांसों के साथ करना जरूरी है।

अंतिम चरण में मन को पूरी तरह शांत करना होता है। इसके लिए खुद को किसी शांत जगह की कल्पना करनी होती है। जैसे किसी शांत मैदान में लेटना या स्थिर पानी पर तैरना। इससे मस्तिष्क को शांति का संकेत मिलता है।

वैज्ञानिक प्रमाण की स्थिति

साइंस अलर्ट के अनुसार किसी भी रक्षा संस्थान ने इस विधि को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है। फिर भी यह नींद विशेषज्ञों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों से मेल खाती है। शोधकर्ता इसकी प्रभावशीलता पर अध्ययन कर रहे हैं।

यह भी पढ़ें:  Indian Rupees: एशिया की सबसे कमजोर करेंसी बना भारतीय रुपया, 90 के पार जा सकता है भाव

सीक्यू यूनिवर्सिटी ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ता डीन जे. मिलर के अनुसार यह विधि एथलीटों और सैन्य कर्मियों के लिए उपयोगी साबित हुई है। यह तकनीक थकान और प्रदर्शन के दबाव को प्रबंधित करने में मदद करती है। हालांकि यह कोई औपचारिक समर्थन नहीं है।

सीबीटी-आई थेरेपी से समानता

सैन्य नींद पद्धति कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी से मेल खाती है। सीबीटी-आई को अनिद्रा के इलाज का सबसे प्रभावी तरीका माना जाता है। इसमें सोचने के तरीके में बदलाव और उत्तेजना पर नियंत्रण शामिल है।

इसमें नींद का समय सीमित करना और सोने की आदतों में सुधार करना भी महत्वपूर्ण है। सैन्य विधि इनमें से कम से कम तीन तकनीकों से मेल खाती है। विशेष रूप से सांस नियंत्रण और आराम की तकनीकों में समानता है।

क्या दो मिनट में आती है नींद

वायरल दावों के बावजूद दो मिनट में नींद आना संदिग्ध है। आम लोगों को सोने में दस से बीस मिनट लगते हैं। पांच मिनट से कम समय में सोना अत्यधिक नींद का संकेत हो सकता है।

यह भी पढ़ें:  ग्रेटर नोएडा: महिला की संदिग्ध हालतों में जलकर हुई मौत, परिजनों ने लगाए गंभीर आरोप; पति गिरफ्तार

सैन्य कर्मियों के लिए भी दो मिनट का आंकड़ा पुष्ट नहीं है। शोधकर्ता मिलर के अनुसार आम नागरिकों के लिए यह लक्ष्य संभव नहीं लगता। नींद की प्रक्रिया को प्राकृतिक रूप से होने देना चाहिए।

तनाव प्रबंधन में सहायक

यह तकनीक तनाव कम करने में मददगार साबित हो सकती है। मांसपेशियों को ढीला छोड़ने से शारीरिक तनाव कम होता है। गहरी सांस लेने से मानसिक शांति मिलती है। कल्पना द्वारा शांत दृश्यों का चित्रण मस्तिष्क को आराम देता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि नियमित अभ्यास से इस तकनीक में सुधार होता है। समय के साथ सोने की प्रक्रिया तेज हो सकती है। हालांकि तुरंत परिणाम की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

सावधानियां और सीमाएं

गंभीर नींद संबंधी समस्याओं के लिए चिकित्सकीय सलाह जरूरी है। यह तकनीक पेशेवर उपचार का विकल्प नहीं है। लंबे समय तक अनिद्रा की स्थिति में विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए।

कुछ लोगों को इस तकनीक से चिंता बढ़ सकती है। ऐसी स्थिति में इसका अभ्यास बंद कर देना चाहिए। नींद की समस्या के मूल कारणों को समझना महत्वपूर्ण है।

Read more

Related News