Shimla News: हिमाचल प्रदेश के मेडिकल शिक्षा तंत्र में बड़ा संकट पैदा हो गया है। शिमला राज्य मेडिकल एवं डेंटल कॉलेज शिक्षक संघ ने राज्य सरकार के ताजा फैसलों को लेकर आंदोलन की चेतावनी दी है। संघ के नेताओं ने स्पष्ट किया कि यदि मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे सामूहिक इस्तीफे और विरोध प्रदर्शन जैसे कड़े कदम उठाएंगे।
संघ के अध्यक्ष डॉ. बलवीर वर्मा और महासचिव डॉ. पीयूष कपिला ने संवाददाताओं से बातचीत में अपनी मुख्य मांगें रखीं। उन्होंने सरकार के तीन फैसलों पर विशेष चिंता जताई। इनमें एनपीए भत्ता बंद करना, भर्ती प्रक्रिया में भेदभाव और कमला नेहरू अस्पताल के स्त्री रोग विभाग का स्थानांतरण शामिल है। उनका कहना है कि ये फैसले संकाय सदस्यों के हितों के विरुद्ध हैं।
एनपीए भत्ते को लेकर विवाद
सबसे बड़ा विवाद नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस यानी एनपीए भत्ते को लेकर है। सरकार ने हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से चयनित शिक्षकों का यह भत्ता बंद कर दिया है। लेकिन विभागीय पदोन्नति से आए शिक्षकों को यह भत्ता मिलता रहेगा। इससे संकाय में दो तरह के वर्ग पैदा हो गए हैं।
इस भेदभावपूर्ण नीति से शिक्षकों में गहरा असंतोष है। डॉ. वर्मा ने बताया कि इससे मेधावी चिकित्सक राज्य छोड़कर जा रहे हैं। वे एम्स और पीजीआई जैसे संस्थानों में नौकरी करना पसंद कर रहे हैं। इससे राज्य के मेडिकल शिक्षा स्तर पर बुरा असर पड़ रहा है।
भर्ती प्रक्रिया में असमानता
भर्ती प्रक्रिया में भी गंभीर असमानताएं देखने को मिल रही हैं। संघ का आरोप है कि सरकार भर्ती के मामले में पारदर्शिता नहीं बरत रही है। योग्य उम्मीदवारों को उचित अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। इससे शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
डॉ. कपिला ने कहा कि इस तरह की नीतियों से प्रतिभा का पलायन बढ़ता है। राज्य के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं। इसका सीधा असर छात्रों की शिक्षा और प्रशिक्षण पर पड़ रहा है। भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
कमला नेहरू अस्पताल का मामला
तीसरा बड़ा मुद्दा कमला नेहरू अस्पताल के स्त्री रोग विभाग का इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरण है। संघ का मानना है कि यह कदम अस्पताल की सेवाओं के लिए ठीक नहीं है। इससे मरीजों को परेशानी हो सकती है और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं।
शिक्षकों का कहना है कि इस स्थानांतरण से शैक्षणिक गतिविधियों पर भी असर पड़ेगा। मेडिकल के छात्रों को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग में दिक्कतें आएंगी। इससे उनकी शिक्षा का स्तर गिर सकता है। संघ इस फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग कर रहा है।
आंदोलन की तैयारी
संघ ने सरकार को 15 दिनों का समय दिया है। इस अवधि में यदि मांगें नहीं मानी गईं तो वे कड़े कदम उठाएंगे। इनमें प्रशासनिक पदों से सामूहिक इस्तीफा, कानूनी कार्रवाई और सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन शामिल हैं। संघ ने पहले ही अपनी योजना बना ली है।
संघ के नेताओं ने स्पष्ट किया कि यह लड़ाई केवल भत्तों तक सीमित नहीं है। यह शैक्षणिक उत्कृष्टता और राज्य के स्वास्थ्य तंत्र के भविष्य से जुड़ा मामला है। उनका मानना है कि सरकार के इन फैसलों से पूरा स्वास्थ्य ढांचा प्रभावित होगा।
शिक्षकों में व्यापक असंतोष
राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों के शिक्षक इस आंदोलन में शामिल हैं। उनका कहना है कि सरकार लगातार उनकी उपेक्षा कर रही है। सेवा शर्तों में गिरावट आ रही है। काम करने की परिस्थितियां खराब हो रही हैं। इससे शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है।
शिक्षकों का मानना है कि इन हालातों में अच्छी शिक्षा देना मुश्किल हो रहा है। प्रतिभाशाली डॉक्टर शिक्षण पेशा छोड़ रहे हैं। इससे मेडिकल शिक्षा का भविष्य खतरे में पड़ गया है। उन्होंने सरकार से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है।
सरकार का रुख
अब तक सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि सरकार इन मांगों पर गंभीरता से विचार कर रही है। जल्द ही कोई निर्णय आ सकता है।
मेडिकल शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मामला संवेदनशील है। सरकार शिक्षकों की चिंताओं को समझती है। विभाग इन मुद्दों का समाधान निकालने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने शिक्षकों से धैर्य बनाए रखने की अपील की।
