शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

मारबर्ग वायरस: इथियोपिया में फैला घातक संक्रमण, WHO ने जारी की चेतावनी

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World News: इथियोपिया ने पहली बार मारबर्ग वायरस के प्रकोप की आधिकारिक पुष्टि की है। दक्षिणी क्षेत्र में नौ संदिग्ध मामले सामने आए हैं। यह वायरस अत्यधिक घातक माना जाता है और तेजी से मानव से मानव में फैल सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पुष्टि की कि यह वही स्ट्रेन है जो पूर्वी अफ्रीका के कई देशों में पहले देखा जा चुका है। वायरस की पहचान दक्षिण सूडान सीमा के पास के इलाकों में हुई है। स्वास्थ्य अधिकारियों ने तुरंत निगरानी बढ़ा दी है।

वायरस का प्रसार और खतरा

मारबर्ग वायरस रोग का औसत मृत्यु दर लगभग पचास प्रतिशत बताया जाता है। यह वायरस रौसेटस मिस्र नामक फल चमगादड़ से मनुष्यों में फैलता है। संक्रमित व्यक्ति के शारीरिक तरल पदार्थों के संपर्क में आने से यह तेजी से फैल सकता है।

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संक्रमित सतहों और वस्तुओं के माध्यम से भी वायरस का प्रसार हो सकता है। शुरुआती लक्षणों में तेज बुखार, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द शामिल हैं। कई मरीजों में एक सप्ताह के भीतर आंतरिक रक्तस्राव शुरू हो जाता है।

अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसियों की प्रतिक्रिया

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इथियोपिया की त्वरित कार्रवाई की सराहना की है। अफ्रीका सीडीसी ने भी स्थिति पर नजर रखनी शुरू कर दी है। स्वास्थ्य एजेंसियों का मानना है कि शीघ्र पहचान और रोकथाम प्रयास महत्वपूर्ण हैं।

संक्रमित क्षेत्रों को सील करने के उपाय किए जा रहे हैं। नमूना परीक्षण और निगरानी तंत्र को मजबूत किया जा रहा है। वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं।

उपचार और रोकथाम के उपाय

मारबर्ग वायरस के लिए अभी तक कोई विशिष्ट टीका या दवा उपलब्ध नहीं है। चिकित्सक रोगियों को सहायक देखभाल प्रदान करते हैं। समय पर हाइड्रेशन और ऑक्सीजन थेरेपी महत्वपूर्ण है।

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दर्द नियंत्रण और रक्तस्राव की निगरानी की जाती है। शीघ्र निदान और उपचार से रोगी के बचने की संभावना बढ़ जाती है। रोगियों को अलग रखना संक्रमण रोकने में महत्वपूर्ण है।

वायरस का ऐतिहासिक संदर्भ

मारबर्ग वायरस की पहचान सबसे पहले 1967 में हुई थी। जर्मनी के मारबर्ग और फ्रैंकफर्ट शहरों में प्रकोप देखा गया। सर्बिया के बेलग्रेड में भी इसके मामले सामने आए थे।

यह प्रकोप अफ्रीकी हरे बंदरों पर प्रयोगशाला शोध के दौरान हुआ था। तब से अंगोला, घाना और केन्या जैसे देशों में मामले सामने आ चुके हैं। 2024 में रवांडा और 2025 में तंजानिया ने भी प्रकोपों की पुष्टि की थी।

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