National News: केंद्र सरकार की नई लेबर पॉलिसी के ड्राफ्ट में मनुस्मृति का जिक्र विवादों में घिर गया है। ड्राफ्ट में कहा गया है कि मनुस्मृति सहित प्राचीन ग्रंथों में मजदूरी तय करने और श्रमिक हितों की रक्षा के सिद्धांत मौजूद हैं। इस बयान पर राजनीतिक बहस छिड़ गई है। कांग्रेस ने इसकी कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि जातिभेद करने वाली मनुस्मृति का जिक्र अनुचित है।
लेबर पॉलिसी के ड्राफ्ट में श्रम को आर्थिक आयाम से आगे का विषय बताया गया है। इसमें कहा गया है कि भारतीय दृष्टिकोण में काम केवल आजीविका नहीं बल्कि पवित्र कर्तव्य है। यह सामाजिक सद्भाव और आर्थिक कल्याण को बनाए रखता है। ड्राफ्ट में श्रमिकों को सामाजिक सृजन का अनिवार्य भागीदार बताया गया है।
ड्राफ्ट में प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख
नई लेबर पॉलिसी ड्राफ्ट में मनुस्मृति के अलावा याज्ञवल्क्यस्मृति का जिक्र है। नारदस्मृति और शुक्रनीति को भी संदर्भित किया गया है। अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए राजधर्म की अवधारणा पर प्रकाश डाला गया है। इन ग्रंथों में न्याय और उचित मजदूरी पर जोर दिया गया है।
ड्राफ्ट के अनुसार इन प्राचीन सूत्रों ने आधुनिक श्रम कानून से सदियों पहले श्रम शासन का नैतिक आधार तैयार किया। इसमें शुल्क न्याय की बात कही गई है। मजदूर को समय पर वेतन मिलना न्याय बताया गया है। ऐसा न होना अन्याय की श्रेणी में रखा गया है।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
कांग्रेस ने लेबर पॉलिसी ड्राफ्ट में मनुस्मृति के जिक्र पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह आरएसएस की सबसे प्रिय परंपराओं के अनुरूप है। उन्होंने आरोप लगाया कि संविधान के अपनाए जाने के बाद आरएसएस ने इस आधार पर संविधान पर हमला किया था।
कांग्रेस नेता ने कहा कि आरएसएस का मानना था कि संविधान को मनुस्मृति से प्रेरणा लेनी चाहिए थी। जयराम रमेश ने कहा कि मनुस्मृति के सिद्धांतों की ओर यह वापसी चिंताजनक है। इससे पता चलता है कि सरकार कैसा समाज बनाना चाहती है।
ड्राफ्ट पॉलिसी की मुख्य बातें
लेबर पॉलिसी ड्राफ्ट में श्रम को धार्मिक कर्तव्य के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि प्रत्येक श्रमिक सामाजिक सृजन का अनिवार्य भागीदार है। कारीगर, किसान, शिक्षक और औद्योगिक मजदूर सभी को व्यवस्था का अंग माना गया है। यह दृष्टिकोण श्रमिकों को विशेष दर्जा देता है।
शुक्रनीति के हवाले से ड्राफ्ट में कहा गया है कि नियोक्ता का कर्तव्य है कि वह कर्मचारी को सुरक्षित माहौल प्रदान करे। मानवीय कार्य वातावरण उपलब्ध कराना नियोक्ता की जिम्मेदारी है। यह बात आधुनिक श्रम कानूनों से मेल खाती है। ड्राफ्ट में प्राचीन और आधुनिक विचारों का समन्वय देखने को मिलता है।
विवाद की पृष्ठभूमि
मनुस्मृति लंबे समय से राजनीतिक और सामाजिक बहस का विषय रही है। इस ग्रंथ को जातिगत भेदभाव का समर्थक माना जाता रहा है। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति का दहन किया था। वे इसे सामाजिक असमानता का प्रतीक मानते थे।
नई लेबर पॉलिसी में इस ग्रंथ के जिक्र ने पुराने विवादों को फिर से जीवित कर दिया है। विपक्षी दलों का मानना है कि यह सरकार की सामाजिक सोच को दर्शाता है। सरकार की ओर से अभी तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। विशेषज्ञ इस मामले में और विकास की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
