Mandi News: प्रिंसिपल जज फैमिली कोर्ट मंडी ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने दो नाबालिग बच्चों की मासिक भत्ता याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार किया है। न्यायालय ने पिता को प्रत्येक बच्चे के लिए चार हजार रुपये प्रति माह भत्ता देने का आदेश दिया है। इस प्रकार पिता को अब हर महीने आठ हजार रुपये का भुगतान करना होगा। बच्चों की मां ने दस हजार रुपये प्रति माह की वित्तीय सहायता मांगी थी।
मामले में दोनों नाबालिग बच्चे अपनी मां के साथ उनके पैतृक घर में रह रहे हैं। माता-पिता के बीच पारिवारिक विवाद और तनाव के कारण वे अलग रह रहे हैं। याचिकाकर्ता पत्नी ने अदालत में बताया कि उन्होंने घरेलू हिंसा के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई है। वह मामला अभी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान है।
पक्षों की दलीलें और तर्क
पत्नी ने अदालत में दावा किया कि पति ने बच्चों और उनके लिए कोई वित्तीय सहायता नहीं दी है। इसके जवाब में पति ने अपनी बेरोजगारी का हवाला दिया। उसने यह भी दावा किया कि उसकी पत्नी आर्थिक रूप से सक्षम है। हालांकि पति अपने इन दावों के लिए कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका। अदालत ने इस पर विशेष ध्यान दिया।
न्यायालय ने पाया कि पत्नी पहले ग्राम पंचायत में वार्ड सदस्य रह चुकी हैं। लेकिन वर्तमान में वह बेरोजगार हैं। दूसरी ओर पति ने स्वीकार किया कि बच्चों की शिक्षा और पालन-पोषण की जिम्मेदारी उसकी ही है। उसने कहा कि वह फिलहाल बच्चों का समर्थन नहीं कर पा रहा है।
अदालत की टिप्पणियां और निर्णय
अदालत ने पति की आय क्षमता का आकलन किया। न्यायालय ने पाया कि पति शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ है। वह कन्फेक्शनरी की दुकान चलाने में सक्षम है। इससे उसकी अनुमानित मासिक आय पचास हजार रुपये तक हो सकती है। इस आधार पर अदालत ने भत्ते की राशि तय की।
प्रिंसिपल जज ने निर्मल सिंह को आदेश दिया कि वह प्रत्येक बच्चे को चार हजार रुपये मासिक भत्ता दे। पिता को पिछली बकाया राशि तीन महीने के भीतर चुकानी होगी। भत्ते की राशि हर महीने की दस तारीख तक देय होगी। भुगतान नकद या बैंक हस्तांतरण के माध्यम से किया जा सकता है।
भत्ता भुगतान की शर्तें
अदालत ने भत्ता भुगतान की स्पष्ट शर्तें निर्धारित की हैं। भुगतान सीधे बच्चों की मां को किया जाएगा। पिता को हर महीने की दस तारीख से पहले भुगतान करना अनिवार्य है। बकाया राशि के लिए तीन महीने की समयसीमा दी गई है। इस आदेश का पालन न करने पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है।
यह फैसला परिवारिक न्यायालय की शक्तियों को दर्शाता है। अदालतें बच्चों के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देती हैं। इस मामले में भी नाबालिग बच्चों की भलाई अदालत का मुख्य ध्यान थी। यह फैसला समान परिस्थितियों में अन्य लोगों के लिए मिसाल बन सकता है।
