Himachal News: मनाली में हर साल लाखों पर्यटक आते हैं। यह संख्या स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाती है। लेकिन इससे प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव पड़ रहा है। एक अध्ययन से पता चला है कि पर्यटन अब विकास के साथ पर्यावरणीय समस्याएं भी ला रहा है। कचरा बढ़ रहा है। वायु और जल प्रदूषण गंभीर हो गया है। भूमि उपयोग बदल रहा है। यदि ऐसा चलता रहा तो मनाली की प्राकृतिक सुंदरता खतरे में पड़ जाएगी।
मनाली नगर परिषद क्षेत्र में हर साल तीस लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचते हैं। खासकर मई से सितंबर तक यहां भीड़ कई गुना बढ़ जाती है। सामान्य दिनों में रोजाना चौदह से पंद्रह टन ठोस कचरा निकलता है। पीक सीजन में यह तैंतीस से छत्तीस टन तक हो जाता है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या से यह समस्या और बड़ी हो रही है।
कचरा प्रबंधन की उचित सुविधाएं नहीं हैं। इसलिए इसका बड़ा हिस्सा खुले में या लैंडफिल साइटों पर फेंका जा रहा है। इससे मिट्टी दूषित हो रही है। जल स्रोत भी प्रभावित हो रहे हैं। वाहनों की बढ़ती संख्या ने वायु प्रदूषण को चिंताजनक स्तर पर पहुंचा दिया है। सांस लेने में मुश्किल हो रही है।
वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति
पीक सीजन में मनाली में श्वसनीय कण पदार्थ का स्तर एक सौ आठ दशमलव आठ माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा दर्ज होता है। राष्ट्रीय मानक साठ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानक सिर्फ बीस माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। यह स्तर स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहा है। रोहतांग दर्रा में वाहनों से काली बर्फ जमा हो रही है। यह प्रदूषण का भयानक रूप दिखाता है।
जल प्रदूषण बढ़ रहा है
पर्यटन सीजन में सीवेज उत्पादन पंद्रह से सोलह मिलियन लीटर प्रतिदिन तक पहुंच जाता है। लेकिन मौजूदा उपचार संयंत्र की क्षमता सिर्फ एक दशमलव बयासी मिलियन लीटर प्रतिदिन है। नतीजा यह है कि बड़ा हिस्सा बिना उपचार के ब्यास नदी में मिल रहा है। नदी के पानी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया बढ़ रहे हैं। जलीय जीव प्रभावित हो रहे हैं। पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ रहा है।
निर्माण कार्य तेजी से बढ़ रहे हैं। पर्यटकों की जरूरतों के लिए होटल और रेस्तरां बनाए जा रहे हैं। इससे कृषि भूमि और फल के बाग कंक्रीट की इमारतों में बदल रहे हैं। पारंपरिक घर भी गायब हो रहे हैं। हरित क्षेत्र कम हो रहा है। जंगल और जल संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने यह अध्ययन किया है। यह स्विटजरलैंड के एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ था। अध्ययन में मनाली पर्यटन के गंभीर प्रभाव सामने आए हैं। ठोस कचरा और सीवेज की समस्या प्रमुख है। वाहन प्रदूषण भी बड़ा मुद्दा है।
पर्यटन से रोजगार बढ़े हैं। होटल और टैक्सी व्यवसाय फल फूल रहे हैं। होम स्टे और साहसिक गतिविधियां लोगों को काम दे रही हैं। लेकिन दूसरी ओर कुछ नकारात्मक प्रभाव भी दिख रहे हैं। कीमतें बढ़ रही हैं। दैनिक जीवन प्रभावित हो रहा है।
रोहतांग जैसे क्षेत्रों में यातायात से प्रदूषण बढ़ा है। काली बर्फ का जमना चिंता की बात है। खुले में कचरा फेंकने से मिट्टी और पानी दोनों खराब हो रहे हैं। यदि पर्यटन को नियोजित नहीं किया गया तो बड़ा नुकसान होगा।
मनाली की प्राकृतिक सुंदरता सबको आकर्षित करती है। लेकिन बढ़ते पर्यटकों से संसाधन सीमित पड़ रहे हैं। कचरा निस्तारण की व्यवस्था मजबूत करने की जरूरत है। वाहनों को नियंत्रित करना जरूरी है। निर्माण पर रोक लगानी चाहिए।
अध्ययन के अनुसार पीक सीजन में समस्याएं ज्यादा होती हैं। ठोस कचरा दोगुना हो जाता है। सीवेज उपचार अपर्याप्त है। वायु गुणवत्ता मानकों से बहुत नीचे है। ये तथ्य मनाली पर्यटन की वास्तविकता दिखाते हैं।
भूमि पर दबाव से हरियाली कम हो रही है। सेब के बाग और खेत होटलों में बदल रहे हैं। जल और वन संसाधन प्रभावित हैं। यह बदलाव लंबे समय तक असर डालेगा। संतुलित विकास की आवश्यकता है।
पर्यटन अर्थव्यवस्था का आधार है। लेकिन पर्यावरण की रक्षा भी जरूरी है। विशेषज्ञों का कहना है कि योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ना चाहिए। अन्यथा मनाली की सुंदरता हमेशा के लिए खराब हो सकती है।
