Maharashtra News: विशेष एनआईए कोर्ट ने मालेगांव बम विस्फोट मामले में फैसला सुनाया। सात आरोपियों, जिसमें प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित शामिल हैं, को बरी कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने विस्फोट की पुष्टि की, लेकिन मोटरसाइकिल में बम होने का सबूत नहीं दिया। घायलों की संख्या 101 नहीं, 95 थी। मेडिकल सर्टिफिकेट में हेराफेरी का भी खुलासा हुआ।
कोर्ट के प्रमुख बयान
एनआईए कोर्ट ने मालेगांव बम विस्फोट मामले में कई खामियां गिनाईं। यूएपीए लागू नहीं हुआ, क्योंकि मंजूरी आदेश दोषपूर्ण थे। पुरोहित के घर विस्फोटक भंडारण का कोई सबूत नहीं मिला। जांच अधिकारी ने घटनास्थल का स्केच नहीं बनाया। फिंगरप्रिंट या डंप डेटा एकत्र नहीं हुए। नमूने दूषित थे, इसलिए रिपोर्ट अविश्वसनीय रही। बाइक का चेसिस नंबर अस्पष्ट था, और इसका प्रज्ञा ठाकुर से संबंध साबित नहीं हुआ।
17 साल पुराना विवादित मामला
2008 में मालेगांव में मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर विस्फोट हुआ, जिसमें छह लोग मारे गए और 95 घायल हुए। इस मामले ने हिंदू आतंकवाद जैसे शब्द को जन्म दिया, जिससे सियासी विवाद बढ़ा। प्रज्ञा ठाकुर, पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी पर यूएपीए और आईपीसी के तहत मुकदमा चला। एनआईए ने सजा की मांग की थी।
एनआईए की दलीलें
एनआईए ने कहा कि मालेगांव बम विस्फोट मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने, सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने और आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालने की साजिश था। मुकदमा 2018 में शुरू हुआ और 19 अप्रैल, 2025 को पूरा हुआ। कोर्ट ने 29 सितंबर, 2008 के इस विस्फोट मामले को फैसले के लिए सुरक्षित रखा था। जज ए.के. लाहोटी ने अंतिम फैसला सुनाया।
