Delhi News: दिल्ली हाई कोर्ट ने भरण-पोषण के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा कानून के तहत पहली और दूसरी शादी में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। यदि कोई व्यक्ति दूसरी शादी करता है, तो उसे अपनी दूसरी पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण देना होगा। यह फैसला एक पुरुष की याचिका पर आया, जिसमें उसने दूसरी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार किया था।
दूसरी शादी का दायित्व
जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने स्वेच्छा से दूसरी शादी की और पत्नी व बच्चों को स्वीकार किया। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि वह अब कानूनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसकी पहली शादी से भी बच्चे हैं, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए भरण-पोषण देने का आदेश दिया।
दोनों पक्षों के दावे
महिला ने कोर्ट को बताया कि 1987 में अपने पहले पति की मृत्यु के बाद वह अकेले दो बेटों की परवरिश कर रही थी। याचिकाकर्ता ने बच्चों की देखभाल और प्यार का वादा कर शादी की थी। दूसरी ओर, पुरुष ने दावा किया कि महिला ने स्वेच्छा से ससुराल छोड़ा और सुलह की कोई कोशिश नहीं की। कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया, क्योंकि उसने बच्चों के लिए समर्थन मांगा था।
कानूनी स्थिति
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत दूसरी पत्नी को भी भरण-पोषण का अधिकार है, भले ही शादी कानूनी रूप से मान्य न हो। कोर्ट ने कहा कि दूसरी शादी को बहाना बनाकर जिम्मेदारी से नहीं बचा जा सकता। यह फैसला उन परिवारों के लिए राहत लेकर आया है, जो आर्थिक सहायता की उम्मीद में लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
