Aurangabad News: महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में किसान आत्महत्या की घटनाएं थम नहीं रही हैं। वर्ष 2025 के पहले आठ महीनों में कुल 1,214 किसानों ने आत्महत्या की है। इनमें से 762 मामलों की जांच पूरी हो चुकी है और मुआवजा वितरण शुरू हो गया है। 208 मामले अभी भी लंबित हैं। पीड़ित परिवारों को 7.62 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी जा चुकी है।
बीड जिले में सबसे अधिक 172 और नांदेड़ में 104 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए हैं। जालना और लातूर जिलों में सबसे अधिक मामले लंबित हैं। अगस्त महीने में आत्महत्या के मामलों में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन लंबित प्रकरणों की संख्या बढ़ गई है। सरकार ने मुआवजा प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्णय लिया है।
जिलावार आंकड़े
औरंगाबाद संभाग में कुल 128 मामले दर्ज हुए, जिनमें 91 योग्य पाए गए। जालना में 49 मामलों में से 33 लंबित हैं। परभणी में 71 मामले सामने आए, जबकि हिंगोली में 43 किसानों ने आत्महत्या की। नांदेड़ जिले में 104 मामलों में से 30 लंबित हैं। बीड जिला सबसे अधिक प्रभावित है जहां 172 मामले दर्ज किए गए।
लातूर में 55 और धाराशिव में 85 मामले दर्ज किए गए। संपूर्ण औरंगाबाद डिवीजन में कुल 707 मामले सामने आए हैं। इनमें से 463 मामले मुआवजे के योग्य पाए गए, जबकि 151 मामले अभी भी लंबित हैं। सरकार ने लंबित मामलों की जल्द से जल्द जांच पूरी करने का आदेश दिया है।
कृषि पर निर्भरता
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार अधिकांश किसान पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं। उनके पास आय का कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं है। फसल खराब होने की स्थिति में वे आर्थिक संकट में फंस जाते हैं। इससे उनमें निराशा की भावना पैदा होती है। कर्ज का बोझ बढ़ने से किसान आत्महत्या को मजबूर होते हैं।
राजनीतिक विवाद
महाराष्ट्र के कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे की एक टिप्पणी ने विवाद पैदा कर दिया। उन्होंने कहा कि कुछ किसान माफी की उम्मीद में जानबूझकर ऋण नहीं चुकाते। उन्होंने किसानों पर खेतों में निवेश न करने का आरोप लगाया। बाद में मंत्री ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगी। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने इस टिप्पणी की आलोचना की।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
मराठवाड़ा क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन का शिकार हो रहा है। इस क्षेत्र में बार-बार सूखा पड़ रहा है। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसलों को नुकसान हो रहा है। जुलाई 2022 की बाढ़ ने कपास और दालों की फसल को बुरी तरह प्रभावित किया था। किसानों की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है।
जल संकट गहराया
इस क्षेत्र में पानी की गंभीर कमी है। अर्ध-शुष्क परिस्थितियों और अपर्याप्त सिंचाई सुविधाओं के कारण किसान मानसून पर निर्भर हैं। भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। किसानों को अब 700 से 1000 फीट गहरे बोरवेल खोदने पड़ रहे हैं। इससे सिंचाई की लागत काफी बढ़ गई है। किसान आर्थिक रूप से और भी अधिक दबाव में आ गए हैं।
जलाशयों की स्थिति
वर्ष 2015 में मंजारा जैसे प्रमुख जलाशयों में पानी का भंडारण शून्य हो गया था। इससे सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता और कम हो गई। कई किसानों ने रोजगार की तलाश में पलायन किया है। वे गन्ना काटने या शहरों में मजदूरी करने को मजबूर हैं। इससे परिवारों और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
