Chennai News: मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को एक बड़ा झटका दिया है। अदालत ने कहा कि मंदिरों को मिले दान का पैसा सिर्फ धार्मिक और धर्मार्थ कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कोर्ट ने सरकार के उन पांच आदेशों को रद्द कर दिया जिनमें मंदिर के पैसे से विवाह मंडप बनाने को कहा गया था।
अदालत का महत्वपूर्ण फैसला
मदुरै पीठ के न्यायमूर्ति एस.एम सुब्रहमण्यम और न्यायमूर्ति जी. अरुल मुरुगन ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि मंदिर का धन सिर्फ मंदिर के रखरखाव और धार्मिक गतिविधियों पर खर्च किया जा सकता है। इस पैसे का व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। यह फैसला एक जनहित याचिका पर आया था।
सरकार के तर्क को खारिज किया
राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि विवाह मंडपों का इस्तेमाल हिंदू विवाह समारोहों के लिए होगा। लेकिन अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है लेकिन यह धार्मिक उद्देश्य नहीं है। विवाह मंडपों को किराए पर दिया जाना था जो व्यावसायिक गतिविधि है।
दान के पैसे पर देवता का अधिकार
अदालत ने स्पष्ट किया कि भक्तों द्वारा दान किया गया धन देवता की संपत्ति है। इसका इस्तेमाल सिर्फ मंदिर के कामों के लिए हो सकता है। इस पैसे को सार्वजनिक धन या सरकारी धन नहीं माना जा सकता। अदालत ने चेतावनी दी कि इस धन के दुरुपयोग से हिंदू भक्तों की religious feelings आहत होगी।
धार्मिक कानून का हवाला
अदालत ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1959 का जिक्र किया। इस कानून के तहत मंदिर के धन का इस्तेमाल सिर्फ धार्मिक कार्यों के लिए किया जा सकता है। इसमें पूजा, अन्नदान, तीर्थयात्रियों की सहायता और गरीबों की मदद शामिल है। सरकार इस पैसे से राजस्व बढ़ाने के काम नहीं कर सकती।
