Bhopal News: मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में नया मामला दायर हुआ है। मध्य प्रदेश ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने 27 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती देते हुए 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग की है। याचिका में दावा किया गया है कि ओबीसी आबादी 50 प्रतिशत से अधिक होने के बावजूद उन्हें केवल 27 प्रतिशत आरक्षण मिलना भेदभावपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिका को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने पूछा कि ओबीसी को आबादी के अनुपात में आरक्षण क्यों नहीं दिया जा रहा है।
याचिका में प्रमुख तर्क
याचिकाकर्ताओं ने 1994 के मध्य प्रदेश आरक्षण अधिनियम की धारा 4(2) को असंवैधानिक बताया है। उनका कहना है कि यह धारा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करती है। वकील वरुण ठाकुर ने बताया कि ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है लेकिन क्लास-1 और क्लास-2 सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व 13 प्रतिशत से कम है।
सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट में तर्क दिया कि 2011 की जनगणना के अनुसार ओबीसी आबादी 50.01 प्रतिशत है। एससी को 16 प्रतिशत और एसटी को 20 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है जो अनुपातिक है। लेकिन ओबीसी को मात्र 27 प्रतिशत मिलना भेदभाव है।
वर्तमान आरक्षण व्यवस्था
कमलनाथ सरकार ने मार्च 2019 में ओबीसी आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया था। इसके बाद राज्य में कुल आरक्षण 73 प्रतिशत हो गया। एससी को 16 प्रतिशत, एसटी को 20 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है।
इस अध्यादेश को पहले ही मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। सामान्य वर्ग के याचिकाकर्ता इसे 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन मानते हैं। वहीं ओबीसी संगठन इसे अपर्याप्त बता रहे हैं।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
यह मामला ऐसे समय में आया है जब भाजपा सरकार सुप्रीम कोर्ट में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का बचाव कर रही है। कांग्रेस ने भाजपा को ओबीसी विरोधी बताया है। सामान्य वर्ग के संगठन 73 प्रतिशत आरक्षण को योग्यता का हनन मानते हैं।
सोशल मीडिया पर सामान्य वर्ग के यूजर्स ने 27 प्रतिशत आरक्षण को ही मेरिट का हनन बताया है। एक यूजर ने लिखा कि 73 प्रतिशत आरक्षण से सामान्य वर्ग को केवल 27 प्रतिशत अवसर मिलेंगे। यह असमानता को बढ़ावा देता है।
आगे की कार्यवाही
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की है। मध्य प्रदेश सरकार को अपना जवाब दाखिल करना होगा। इस मामले का फैसला राष्ट्रीय स्तर पर आरक्षण नीति को प्रभावित कर सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला आबादी आधारित आरक्षण की बहस को नई दिशा दे सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी जितनी आबादी उतना हक का मुद्दा उठा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला ऐतिहासिक महत्व का होगा।
