Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में नीट पीजी काउंसलिंग पर तत्काल रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने 50% से अधिक आरक्षण देने को संविधान विरोधी करार दिया। कोर्ट ने कहा कि कई श्रेणियों को मिलाकर आरक्षण 100% के करीब पहुंच रहा है। इससे सामान्य वर्ग के मेधावी छात्रों के लिए कोई सीट नहीं बच रही।
हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि यह स्थिति दूसरे राज्यों और मध्य प्रदेश के छात्रों के साथ खिलवाड़ है। न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के 50% आरक्षण सीमा संबंधी फैसलों का हवाला दिया। राज्य सरकार ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि फिलहाल काउंसलिंग रोक दी गई है। अगली सुनवाई तक काउंसलिंग नहीं होगी।
आरक्षण की सीमा पार करने पर कोर्ट की तीखी टिप्पणी
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने आरक्षण की बढ़ी हुई सीमा पर तीखी टिप्पणी की। बेंच ने कहा कि यह तो वैसा ही हो गया है जैसे शोले फिल्म का मशहूर डायलॉग – आधे इधर जाओ, आधे उधर जाओ, बाकी मेरे पीछे आओ। कोर्ट की इस टिप्पणी से कोर्ट रूम में मुस्कुराहट फैल गई। लेकिन यह टिप्पणी राज्य सरकार के लिए एक करारा झटका साबित हुई।
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि मध्य प्रदेश में ईडब्ल्यूएस, ओबीसी, एससी-एसटी और अन्य श्रेणियों को मिलाकर आरक्षण 70-80% से अधिक हो रहा है। इससे सामान्य वर्ग के छात्र पूरी तरह से बाहर हो रहे हैं। हाईकोर्ट ने इस दलील को सही ठहराया और आरक्षण की सीमा का उल्लंघन माना।
छात्रों पर क्या पड़ेगा असर?
हाईकोर्ट के इस फैसले से नीट पीजी की काउंसलिंग प्रक्रिया अटक गई है। हजारों छात्रों की पढ़ाई और करियर प्रभावित हो सकता है। राज्य सरकार को अब आरक्षण की नई नीति बनानी होगी। यह नीति संवैधानिक सीमाओं के भीतर होनी चाहिए।
मेडिकल शिक्षा में प्रवेश प्रक्रिया अनिश्चितता में घिर गई है। छात्रों को अब अगली सुनवाई का इंतजार करना होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के मापदंडों का पालन करना जरूरी है। सामान्य वर्ग के मेधावी छात्रों के अधिकारों की रक्षा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
आरक्षण नीति में संतुलन जरूरी
हाईकोर्ट के फैसले ने आरक्षण नीति में संतुलन की जरूरत को रेखांकित किया है। न्यायालय का मानना है कि आरक्षण की कोई भी नीति संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करे। सभी वर्गों के छात्रों के अवसर सुरक्षित रहने चाहिए। मेधावी छात्रों को उनके अधिकार मिलने चाहिए।
राज्य सरकार को अब अपनी आरक्षण नीति पर पुनर्विचार करना होगा। सभी श्रेणियों के आरक्षण को मिलाकर कुल सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती। इस मामले में अगली सुनवाई महत्वपूर्ण होगी। तब तक नीट पीजी काउंसलिंग पूरी तरह से रुकी रहेगी।
