Madhya Pradesh News: राज्य में विषाक्त कफ सिरप मामले के बाद स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियां सामने आई हैं। अब खाद्य सुरक्षा में गंभीर चूक देखने को मिल रही है। भोपाल की एकमात्र खाद्य प्रयोगशाला में माइक्रोबायोलॉजी जांच तक नहीं हो पा रही है। खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के रिक्त पदों के चलते निगरानी व्यवस्था चरमराई हुई है। इससे खाने-पीने की चीजों में विषाक्तता का गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
विषाक्त कफ सीरप से हुई बच्चों की मौतों के बाद स्वास्थ्य विभाग ने दवा जांच और निगरानी को मजबूत करने का प्रस्ताव भेजा है। विभाग ने इसके लिए 211 करोड़ रुपये की राशि मांगी है। हालांकि, खाद्य पदार्थों की जांच व्यवस्था अभी भी चिंताजनक स्थिति में है। भोपाल की एकमात्र फूड लैब में एनएबीएल प्रमाणपत्र न होने के कारण चार महीने तक सैंपल जांच रुकी रही।
लैब में दिवाली से चार दिन पहले ही जांच प्रक्रिया फिर से शुरू हो सकी है। खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी संसाधनों की व्यवस्था राज्य सरकार अभी भी एफएसएसएआई पर निर्भर है। विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट और गंदगी की रोकथाम के लिए मजबूत व्यवस्था जरूरी है।
खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की भारी कमी
राज्य केसभी 313 विकास खंडों में एक-एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी होना अनिवार्य है। स्वीकृत पदों की संख्या 367 है लेकिन केवल 152 पद ही भरे हुए हैं। यह संख्या जरूरत से आधे से भी कम है। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग से नए अधिकारियों की भर्ती की प्रक्रिया चल रही है। नए अधिकारी अगले साल ही मिल पाएंगे।
पूरे प्रदेश में चार लाख से अधिक होटल और खाद्य दुकानें हैं। इन सभी की निगरानी की जिम्मेदारी महज 152 अधिकारियों पर है। इस हिसाब से एक अधिकारी पर लगभग 2631 दुकानों की निगरानी की जिम्मेदारी आती है। यह संख्या व्यवस्था पर भारी दबाव को दर्शाती है।
प्रयोगशाला की सीमित क्षमता
एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी को प्रति माह 10 वैधानिक और 20 निगरानी नमूने लेने होते हैं। 152 अधिकारियों के हिसाब से सालाना केवल वैधानिक नमूने ही 18,240 हो जाते हैं। लेकिन भोपाल स्थित प्रयोगशाला की वार्षिक जांच क्षमता केवल 6,000 नमूनों की है।
अतिरिक्त समय में जांच करके लैब सालाना लगभग 13,000 नमूनों की ही जांच कर पाती है। शेष 5,000 से अधिक नमूने अगले साल तक के लिए लंबित रह जाते हैं। इससे खाद्य सुरक्षा की निगरानी प्रभावित हो रही है।
माइक्रोबायोलॉजी जांच की सुविधा नहीं
खाद्य पदार्थों में बैक्टीरिया, फंगस और अन्य हानिकारक जीवाणुओं की मौजूदगी का पता लगाने के लिए माइक्रोबायोलॉजी जांच जरूरी है। राज्य की मुख्य प्रयोगशाला में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। कुछ चुनिंदा नमूनों की जांच निजी प्रयोगशालाओं में कराई जाती है।
खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के पास अलग से कार्यालय या वाहन की सुविधा भी नहीं है। इस कारण निगरानी कार्य ठीक से नहीं हो पाता। अधिकारियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
नई प्रयोगशालाओं का निर्माण धीमी गति से
इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में नई खाद्य प्रयोगशालाएं बनाने का काम पिछले छह वर्षों से चल रहा है। अब तक एक भी प्रयोगशाला काम शुरू नहीं कर पाई है। इंदौर की प्रयोगशाला 27 अक्टूबर से शुरू होने जा रही है। इसका शुभारंभ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव करेंगे।
नियंत्रक खाद्य एवं औषधि प्रशासन दिनेश श्रीवास्तव ने बताया कि लैबों की जांच क्षमता बढ़ाई जाएगी। सभी जिलों में खाद्य एवं औषधि प्रशासन का कार्यालय बनाने का प्रस्ताव है। इससे निगरानी व्यवस्था में सुधार की उम्मीद है।
विषाक्त कफ सिरप की घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग ने दवा जांच प्रणाली को मजबूत करने पर जोर दिया है। खाद्य सुरक्षा के मोर्चे पर भी सुधार के प्रयास शुरू हुए हैं। हालांकि, इन सभी योजनाओं के परिणाम आने में अभी समय लगेगा। तब तक जनस्वास्थ्य के लिए जोखिम बना हुआ है।
