Uttar Pradesh News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़ों के अधिकारों को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने बारह ऐसे जोड़ों को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मौलिक अधिकार पाने के लिए शादी करना जरूरी नहीं है। यह फैसला जस्टिस विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने दिया।
इन जोड़ों ने अदालत में याचिका दाखिल की थी। उन्होंने कहा था कि उनके परिवार उन्हें धमकी दे रहे हैं। जब उन्होंने जिला पुलिस से सुरक्षा मांगी तो उन्हें पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिली। इसके बाद उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अदालत ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली।
कोर्ट ने क्या कहा
अदालत नेकहा कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले युवाओं को भी राज्य से सुरक्षा का अधिकार है। जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान द्वारा प्रदान किया गया है। यह अधिकार शादीशुदा होने या न होने पर निर्भर नहीं करता। अदालत ने इस बात पर जोर दिया।
जस्टिस विवेक कुमार सिंह ने कहा कि मानव जीवन के अधिकार को सर्वोच्च दर्जा दिया जाना चाहिए। चाहे कोई नागरिक नाबालिग हो या वयस्क। चाहे वह शादीशुदा हो या अविवाहित। सिर्फ इस आधार पर कि याचिकाकर्ताओं ने शादी नहीं की है, उनके मौलिक अधिकार छीने नहीं जा सकते।
कानूनी दृष्टिकोण
अदालत नेस्पष्ट किया कि लिव इन रिलेशनशिप भारतीय कानून द्वारा प्रतिबंधित नहीं है। समाज इसे किस नजरिए से देखता है, यह अलग बात है। कानूनी सुरक्षा का प्रश्न समाज की स्वीकार्यता से अलग है। संविधान वयस्कों के ऐसे रिश्तों की सुरक्षा करता है।
अदालत ने कहा कि वयस्क होने के बाद व्यक्ति को यह तय करने की आजादी है। वह कहां और किसके साथ रहना चाहता है। एक बार वयस्क व्यक्ति ने अपना साथी चुन लिया तो किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। परिवार के सदस्यों को भी उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल नहीं देना चाहिए।
राज्य का कर्तव्य
कोर्ट नेराज्य के कर्तव्यों को रेखांकित किया। संवैधानिक जिम्मेदारियों के तहत राज्य का यह दायित्व है। उसे हर नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए। पुलिस को यह सुनिश्चित करना होगा कि नागरिक सुरक्षित रहें। खासकर तब जब उन्हें धमकियों का सामना करना पड़ रहा हो।
अदालत ने पिछले कुछ फैसलों का भी जिक्र किया। कुछ मामलों में हाईकोर्ट ने लिव इन जोड़ों को सुरक्षा देने से मना कर दिया था। जस्टिस सिंह ने कहा कि वे उन विचारों से सहमत नहीं हैं। ये विचार सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुरूप नहीं हैं।
याचिकाकर्ताओं के बारे में
मौजूदामामले में सभी याचिकाकर्ता वयस्क हैं। उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। उनकी सुरक्षा की प्रार्थना को अस्वीकार करने का कोई कानूनी आधार नहीं है। उन्होंने शादी की पवित्रता के बिना साथ रहने का फैसला किया है। अदालत का काम उनके फैसले पर सवाल उठाना नहीं है।
अदालत ने सभी बारह याचिकाओं को स्वीकार कर लिया। अदालत ने पुलिस को विस्तृत निर्देश भी जारी किए। भविष्य में अगर इन जोड़ों को कोई धमकी मिलती है तो पुलिस को कैसे कार्रवाई करनी चाहिए। इस बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
सामाजिक संदर्भ
भारतीय समाज केकई हिस्सों में लिव इन रिलेशनशिप को स्वीकार्यता नहीं मिली है। लेकिन कानून का नजरिया अलग है। अदालत ने सामाजिक नैतिकता और कानूनी प्रावधानों के बीच अंतर स्पष्ट किया। व्यक्तिगत पसंद और सामाजिक मान्यताएं अलग-अलग हो सकती हैं।
इस फैसले का व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। देश भर में ऐसे कई जोड़े हैं जो लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। उन्हें अक्सर परिवार और समाज का विरोध झेलना पड़ता है। यह फैसला उनके कानूनी अधिकारों को मजबूती प्रदान करता है।
निष्कर्ष के बिना
इलाहाबाद हाईकोर्ट कायह फैसला एक मिसाल कायम करता है। यह दर्शाता है कि कानून सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। व्यक्ति की पसंद और उसकी निजता का सम्मान जरूरी है। अदालतों का यही दृष्टिकोण एक लोकतांत्रिक समाज की नींव है।