Kathmandu News: नेपाल की सांस्कृतिक धरोहर कुमारी देवी की परंपरा एक बार फिर चर्चा में है। हाल के हिंसक प्रदर्शनों के बाद सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि काठमांडू की कुमारी देवी ने पहले ही अशुभ संकेत दे दिए थे। इंद्र जात्रा महोत्सव के दौरान कुमारी के भाव भावुक देखे गए थे। इस घटना ने सदियों पुरानी इस रहस्यमयी प्रथा पर दुनिया का ध्यान केंद्रित कर दिया है। यह परंपरा नेपाल की नेवार समुदाय की विशेष पहचान है।
कुमारी देवी कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक सजीव बालिका होती है। मान्यता है कि देवी तलेजु या दुर्गा की आत्मा उसमें वास करती है। इसलिए उसे देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। काठमांडू की रॉयल कुमारी सबसे प्रमुख हैं जो दरबार स्क्वायर के पास रहती हैं। उनका चयन एक अत्यंत कठोर और जटिल प्रक्रिया के बाद होता है।
कुमारी चुनने की प्रक्रिया बेहद सख्त है। बच्ची की उम्र तीन से सात वर्ष के बीच होनी चाहिए। वह पूर्णतः स्वस्थ हो और उसके शरीर में कोई दोष न हो। सबसे महत्वपूर्ण है बत्तीस लक्षणों की परीक्षा। इनमें शंख जैसी गर्दन और शेर जैसी छाती जैसे गुण शामिल हैं। ज्योतिषीय मिलान भी अनिवार्य है।
साहस की परीक्षा सबसे कठिन चरण माना जाता है। संभावित बच्ची को कालरात्रि पर तलेजु मंदिर ले जाया जाता है। वहां भैंसों और बकरों की बलि दी जाती है। लोग डरावने मुखौटे पहनकर नृत्य करते हैं। जो बच्ची इस भयावह माहौल में भी नहीं डरती, वही कुमारी चुनी जाती है। यह माना जाता है कि देवी की शक्ति ही उसे निर्भय बनाती है।
कुमारी बनने के बाद बच्ची का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। वह अपने परिवार से अलग कुमारी घर में रहने लगती है। उसे जमीन पर पैर रखने की अनुमति नहीं होती। उसे केवल विशेष अवसरों पर ही बाहर ले जाया जाता है और वह भी पालकी में। उसकी शिक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी एक विशेष समिति की होती है।
मान्यताओं के अनुसार कुमारी के चेहरे के भाव भविष्य के संकेत देते हैं। अगर वह रोती है तो इसे संकट का संकेत माना जाता है। उसका मुस्कुराना समृद्धि का प्रतीक है। शांत रहना आशीर्वाद की निशानी माना जाता है। इसीलिए उसके हर भाव पर लोगों की नजर रहती है।
यह जीवन सम्मानजनक होने के साथ ही चुनौतियों से भरा है। कुमारी को सामान्य बच्चों की तरह खेलने-कूदने की आजादी नहीं होती। उसे हमेशा एक अनुशासित और नियमबद्ध जीवन जीना पड़ता है। यह जिम्मेदारी छोटी उम्र में ही बहुत भारी होती है। इसका सामाजिक और मानसिक प्रभाव पड़ता है।
जैसे ही कुमारी को पहली बार मासिक धर्म होता है, देवी का वास समाप्त माना जाता है। फिर उसे सामान्य जीवन में लौटा दिया जाता है। नेपाल सरकार की ओर से उसे एक निश्चित पेंशन दी जाती है। इसके बाद एक नई कुमारी की खोज की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। यह चक्र सदियों से इसी तरह चलता आ रहा है।
नेपाल में यह परंपरा मल्ल वंश के समय से चली आ रही है। यह नेपाल की जीवंत सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आधुनिक समय में इस प्रथा पर कई सवाल भी उठते रहे हैं। बाल अधिकारों पर इसके प्रभाव की चर्चा होती है। फिर भी, यह परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है।
