Himachal News: कुल्लू घाटी शुक्रवार को एक अद्भुत धार्मिक आयोजन की साक्षी बनेगी। नगर स्थित जगती पट्ट मंदिर में बड़ी जगती का आयोजन हो रहा है। इसमें कुल्लू, मंडी और लाहौल के 350 से अधिक देवता एकत्रित होंगे। यह दुर्लभ संसद प्रकृति के प्रकोप और पर्यावरण संरक्षण पर विचार करेगी।
इस दिव्य संसद का आह्वान माता हडिंबा देवी ने किया है। उन्हें राज परिवार की दादी देवता माना जाता है। हाल में सम्पन्न कुल्लू दशहरा के दौरान देवी का संदेश आया था। इसमें प्रकृति के बढ़ते आक्रोश और मानव उपेक्षा से उत्पन्न संकट की चेतावनी दी गई थी।
देव परंपरा में जगती का महत्व
हिमाचल की देव परंपरा में कुछ ही देवताओं को जगती बुलाने का अधिकार है। माता त्रिपुरा सुंदरी, देवता जमलू और माता हडिंबा इस सूची में शामिल हैं। देवी हडिंबा के निर्देश पर राज परिवार और देव समाज तैयारियों में जुटे हैं। सभी व्यवस्थाएं पूरी कर ली गई हैं।
राज परिवार के सदस्य महेश्वर सिंह ने बताया कि थराह कार्डू का ढोल सुल्तानपुर से नगर तक लाया जाएगा। इसे मंदिर परिसर में माता हडिंबा और माता त्रिपुरा सुंदरी की उपस्थिति में स्थापित किया जाएगा। सुबह नौ बजे योगिनियों की आराधना के बाद जगती शुरू होगी।
जगती की तैयारियां पूरी
सभी गुर तीस अक्टूबर की रात से उपवास रखेंगे। जगती के दौरान ढोल-नगाड़ों और घंटियों की ध्वनियों के बीच गुर देव संदेशों का संचार करेंगे। यह आयोजन एक आध्यात्मिक संवाद होगा। यह मानवता को पर्यावरणीय उत्तरदायित्व की याद दिलाएगा।
मंदिर के केंद्र में स्थित विशाल पत्थर की शिला जगती पट्ट को अद्भुत शक्तियों का धनी माना जाता है। मान्यता है कि इसे मनाली के बहांग पर्वत से देव मधुमक्खियों द्वारा लाया गया था। प्राचीन काल में यह स्थान देव न्यायालय के रूप में कार्य करता था।
इतिहास में जगती के आयोजन
इतिहास में जगती का आयोजन केवल विशेष परिस्थितियों में हुआ है। 1971 में महामारी के दौरान पहली जगती हुई थी। 2007 में स्की विलेज प्रोजेक्ट पर विवाद के समय दूसरा आयोजन हुआ। 2014 में पशु बलि प्रतिबंध के बाद तीसरी जगती बुलाई गई।
2019 में कोविड के बाद शुद्धिकरण के लिए चौथी जगती हुई थी। अब 2025 की यह जगती पांचवां आयोजन होगा। यह फिर एक अहम मोड़ पर आ रही है। प्रकृति और मानव के बीच संतुलन बहाल करने की आवश्यकता सबसे गहरी है।
देव संसद का उद्देश्य
यह देव संसद मानवता को प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का संदेश देगी। पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संतुलन बहाल करने पर चर्चा होगी। स्थानीय लोग इस ऐतिहासिक आयोजन को देखने के लिए उत्सुक हैं। यह कुल्लू घाटी की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण है।
जगती पट्ट मंदिर में सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन हो रहा है। देवताओं की यह सभा सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर महत्वपूर्ण निर्णय लेती है। इस बार का आयोजन विशेष रूप से प्रकृति संरक्षण पर केंद्रित होगा।
