Kullu News: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक पंचायत सचिव ने उच्च न्यायालय का रुख किया है। उन्होंने जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी पर यौन शोषण, गंभीर शारीरिक प्रताड़ना और जान से मारने की धमकी का गंभीर आरोप लगाया है। याचिका में कहा गया है कि पुलिस ने आरोपी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार कर दिया है, जिससे पीड़िता की जान को खतरा है।
पीड़िता के अनुसार, आरोपी एसडीएम ने तीन साल तक उन्हें शादी का झूठा वादा करके यौन शोषण किया। मामला तब और गंभीर हो गया जब 24 सितंबर 2024 को एसडीएम के आधिकारिक आवास पर उनकी बेरहमी से पिटाई की गई। इस घटना में दो अन्य लोग भी शामिल थे। पीड़िता का दावा है कि उनके मोबाइल फोन को जब्त कर लिया गया और उनकी पिटाई की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई।
पीड़िता को उसी दिन एक निजी अस्पताल में इलाज के लिए ले जाया गया, लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज नहीं की। बाद में, मजबूरन एक समझौता करवाया गया। पीड़िता का कहना है कि यह समझौता उनकी मर्जी के खिलाफ था और दर्दनाशक दवाओं के प्रभाव में होने की वजह से वह इसे समझ नहीं पाईं।
पुलिस और प्रशासनिक जिम्मेदारी पर सवाल
याचिका में पुलिस और वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। पीड़िता ने कुल्लू पुलिस, महिला पुलिस थाना और जिला अधीक्षक को लिखित शिकायतें दीं, लेकिन कथित तौर पर किसी ने भी आरोपी एसडीएम के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू नहीं की। इस विफलता को याचिका में पीड़िता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है।
याचिका में कहा गया है कि पीड़िता और उनके परिवार को तत्काल सुरक्षा की जरूरत है। आरोपी एसडीएम के पद पर बने रहने से न्यायिक प्रक्रिया में दखलअंदाजी का खतरा जताया गया है। पीड़िता को डर है कि स्थानीय अदालत में शिकायत दर्ज कराने और एफआईआर के आदेश के बीच के समय में उनकी जान को खतरा हो सकता है।
याचिका में मांगी गई मुख्य राहत
पीड़िता ने उच्च न्यायालय से कई दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है। इनमें पीड़िता और उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान करना, आरोपी एसडीएम को तुरंत पद से हटाना और मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित करना शामिल है। साथ ही, पुलिस से उनका मोबाइल फोन बरामद करने की भी मांग की गई है।
यह मामला सत्ता के गलत इस्तेमाल और संस्थागत विफलता का गंभीर उदाहरण प्रस्तुत करता है। पीड़िता के अनुसार, आरोपी अधिकारी ने खुद को सर्वशक्तिमान बताते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती। याचिका के तथ्य अगर सही साबित होते हैं, तो यह प्रशासनिक व्यवस्था और कानून के शासन के लिए एक बड़ा झटका होगा।
मामला अब हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष है। न्यायालय के फैसले से न केवल इस विशेष मामले में न्याय मिलने की उम्मीद है, बल्कि यह भी तय होगा कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई कथित ज्यादतियों पर कितनी कड़ी कार्रवाई होती है। पूरे प्रकरण ने राज्य में महिला सुरक्षा और पुलिस-प्रशासन की जवाबदेही पर गंभीर बहस छेड़ दी है।
