Kullu News: कुल्लू के अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का सात दिन बाद बुधवार को समापन हो गया। लंका दहन की परंपरा के साथ ही यह उत्सव संपन्न हुआ। भगवान रघुनाथ ने रथ में सवार होकर लंका पर चढ़ाई का प्रतीकात्मक अनुष्ठान पूरा किया। सैकड़ों श्रद्धालुओं ने उनके रथ को खींचकर इस परंपरा में भाग लिया। समारोह के अंत में भगवान रघुनाथ अपने मंदिर सुल्तानुपर लौट गए।
शाम करीब तीन बजे रथयात्रा की तैयारियां शुरू हुई। अड़तालीस मिनट बाद भगवान रघुनाथ अपने अस्थायी शिविर से बाहर आए। वे रथ में विराजमान हुए। इसके बाद पारंपरिक पूजा और परिक्रमा का कार्यक्रम संपन्न हुआ। शाम चार बजे के बाद रथयात्रा ने ढालपुर मैदान की ओर प्रस्थान किया।
लंका दहन का कार्यक्रम ढालपुर मैदान के एक छोर पर आयोजित किया गया। भगवान रघुनाथ को रथ से उतारकर विशेष स्थल तक ले जाया गया। यहां सभी देवी-देवताओं की उपस्थिति में देव परंपराओं का निर्वहन किया गया। अनुष्ठान पूरा होने के बाद भगवान रघुनाथ अन्य देवताओं के साथ वापस लौट आए।
माता हिडिंबा की विशेष भूमिका
माता हिडिंबा कुल्लू दशहरा में सात दिन तक अपने अस्थायी शिविर में ही विराजित रहती हैं। वे लंका दहन के बाद ही अपने देवालय वापस जाती हैं। यह परंपरा वर्षों से निरंतर चली आ रही है। लंका दहन के लिए निकलने वाली रथयात्रा में माता हिडिंबा का रथ सबसे आगे चलता है।
माता हिडिंबा देव महाकुंभ को पूर्ण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लंका दहन के विशेष क्षण में माता को अष्टांग बलि प्रदान की जाती है। इस अनुष्ठान के दौरान माता का गूर, पुजारी, घंटी और धड़च्छ साथ जाते हैं। माता का रथ इस समय कुछ दूरी पर स्थित रहता है।
अष्टांग बलि की प्रक्रिया पूर्ण होते ही माता हिडिंबा का रथ स्वतः ही पीछे मुड़ जाता है। यह रथ सीधे उनके देवालय की दिशा में चल पड़ता है। इसके साथ ही कुल्लू दशहरा उत्सव का औपचारिक समापन मान लिया जाता है। यह पल उत्सव का सबसे महत्वपूर्ण क्षण होता है।
देवताओं का प्रस्थान
लंका दहन के पश्चात सभी देवी-देवता अपने-अपने देवालयों को लौट गए। रथयात्रा में पचास से अधिक देवी-देवताओं ने भाग लिया था। प्रत्येक देवता अपने लाव-लश्कर के साथ अपने गांवों और मंदिरों की ओर रवाना हुए। इसके साथ ही कुल्लू घाटी में सात दिनों तक चलने वाला यह महोत्सव समाप्त हो गया।
भगवान रघुनाथ की वापसी की प्रक्रिया भी विशेष रही। वे अपने रथ पर सवार होकर सुल्तानुपर स्थित अपने मुख्य मंदिर के लिए रवाना हुए। श्रद्धालुओं ने उनके रथ के दर्शन किए और आशीर्वाद लिया। पूरे मार्ग में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी थी।
कुल्लू दशहरा का यह समापन समारोह बेहद रंगारंग और आकर्षक रहा। स्थानीय निवासियों और पर्यटकों ने इसे बड़ी संख्या में देखा। इस उत्सव ने कुल्लू की सांस्कृतिक विरासत को एक बार फिर से जीवंत कर दिया। अगले वर्ष फिर से इसी तरह के आयोजन की प्रतीक्षा रहेगी।
