Kullu News: इस बार कुल्लू का प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव एक अलग रूप में मनाया जाएगा। प्रदेश में आई प्राकृतिक आपदा को देखते हुए उत्सव समिति ने बड़ा फैसला लिया है। इस वर्ष उत्सव में कोई विदेशी सांस्कृतिक दल शामिल नहीं होंगे। बॉलीवुड और पंजाबी गायकों को भी आमंत्रित नहीं किया गया है। दो से आठ अक्टूबर तक चलने वाले इस आयोजन में केवल हिमाचली कलाकारों को ही मंच मिलेगा।
दशहरा उत्सव समिति की शुक्रवार को अटल सदन कुल्लू में बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता विधायक सुंदर सिंह ठाकुर ने की। उन्होंने बताया कि जनता के फीडबैक के आधार पर यह निर्णय लिया गया है। प्रदेश विशेषकर कुल्लू जिले में आपदा से हुए भारी नुकसान को ध्यान में रखा गया। इसलिए सभी सांस्कृतिक संध्याओं में स्थानीय कलाकारों को प्राथमिकता दी जाएगी।
आयोजन में बदलाव
इस बार उत्सव में कल्चरल परेड का आयोजन भी नहीं किया जाएगा। हालांकि, कुल्लू कार्निवल का आयोजन पूर्व की भांति होगा। इस कार्निवल में कुल्लू की संस्कृति की झलक दिखेगी। साथ ही आपदा प्रबंधन और सुरक्षित निर्माण पर विशेष प्रस्तुतियां दी जाएंगी। यह आयोजन आपदा से सबक लेने का संदेश भी देगा।
स्थानीय लोक कलाकारों ने भी इस पहल का समर्थन किया है। कई कलाकार बहुत कम मेहनताने पर या बिना किसी शुल्क के उत्सव में भाग लेने को तैयार हैं। इससे उत्सव के खर्चे में काफी कमी आएगी। बचाई गई धनराशि को आपदा पीड़ितों के पुनर्वास कार्यों में लगाया जाएगा।
वित्तीय पहलू और सहायता
उत्सव समिति ने स्पष्ट किया कि खर्चों में की गई कटौती से बचने वाली राशि सीधे आपदा प्रभावितों की सहायता में खर्च होगी। इस प्रकार यह उत्सव आपदा पीड़ितों के नाम समर्पित रहेगा। इस निर्णय से स्थानीय जनता में सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।
बैठक में कई गणमान्य लोगों ने भाग लिया। इनमें विधायक मनाली भुवनेश्वर गौड़, विधायक बंजार सुरेंद्र शौरी और विधायक आनी लोकेंद्र कुमार शामिल थे। मिल्कफेड अध्यक्ष बुद्धि सिंह, महिला आयोग अध्यक्ष विद्या नेगी और एपीएमसी अध्यक्ष राम सिंह मियां भी मौजूद रहे। सभी ने इस निर्णय का समर्थन किया।
उत्सव का महत्व
कुल्लू दशहरा अपने ऐतिहासिक महत्व और देवी-देवताओं की शोभायात्रा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। पिछले दो वर्षों में इस उत्सव को और बेहतर बनाने का प्रयास किया गया था। इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस ने इसे अपने कैलेंडर में भी शामिल किया है। इससे उत्सव की अंतरराष्ट्रीय पहचान बढ़ी है।
हालांकि, इस बार का फोकस अंतरराष्ट्रीय स्वरूप से हटकर स्थानीय संवेदनाओं पर है। यह निर्णय संकट की घड़ी में समाज की सामूहिक जिम्मेदारी को दर्शाता है। स्थानीय कला और संस्कृति को प्रोत्साहन मिलने से कलाकारों का उत्साह भी बढ़ा है। इससे उत्सव की मौलिकता भी बनी रहेगी।
