Karnataka News: कर्नाटक के सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना को सोमवार को मंत्रिमंडल से हटा दिया गया। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत को पत्र लिखकर उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की। राज्यपाल ने इस सिफारिश को तुरंत स्वीकार कर लिया। राजन्ना पर लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी ही सरकार के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने का दबाव था।
बर्खास्तगी का कारण
केएन राजन्ना ने लोकसभा चुनाव में महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया था। उन्होंने अपनी ही पार्टी की सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। इस बयान ने कर्नाटक की सियासत में हलचल मचा दी। सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री ने पहले राजन्ना से इस्तीफा मांगा, लेकिन उनके इनकार करने पर बर्खास्तगी का फैसला लिया गया। यह कदम पार्टी अनुशासन को बनाए रखने के लिए उठाया गया।
मुख्यमंत्री की सिफारिश और राज्यपाल की मंजूरी
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने दोपहर में राज्यपाल को पत्र भेजकर राजन्ना को मंत्रिमंडल से हटाने की सिफारिश की। राज्यपाल के विशेष सचिव आर प्रभुशंकर ने इस सिफारिश को स्वीकार करते हुए मुख्य सचिव शालिनी रजनीश को अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया। इस कार्रवाई से कर्नाटक की राजनीति में एक नया मोड़ आया है। राजन्ना को सिद्धारमैया का करीबी समर्थक माना जाता था।
राजन्ना के बयानों का विवाद
राजन्ना ने महादेवपुरा में ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाकर अपनी सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। उनके इस बयान ने पार्टी के भीतर और बाहर विवाद को जन्म दिया। सूत्रों का कहना है कि यह बयान उनकी बर्खास्तगी का मुख्य कारण बना। कर्नाटक में सत्तारूढ़ पार्टी ने इस मामले को गंभीरता से लिया और त्वरित कार्रवाई की। कर्नाटक मंत्रिमंडल में बदलाव की चर्चा अब जोर पकड़ रही है।
आगे की राजनीतिक स्थिति
राजन्ना की बर्खास्तगी से कर्नाटक की राजनीति में नई चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सिद्धारमैया के इस फैसले को पार्टी अनुशासन और सरकार की छवि को बनाए रखने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। हालांकि, राजन्ना के समर्थक इस कार्रवाई से नाराज हो सकते हैं। आने वाले दिनों में इस घटना का असर कर्नाटक की सियासत पर देखने को मिलेगा।
मंत्रिमंडल में बदलाव की संभावना
केएन राजन्ना के हटने के बाद मंत्रिमंडल में नए चेहरों को शामिल करने की अटकलें तेज हो गई हैं। सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जल्द ही मंत्रिमंडल में फेरबदल कर सकते हैं। पार्टी के भीतर संतुलन बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया जा सकता है। कर्नाटक की राजनीति में यह बदलाव महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
