India News: कारगिल युद्ध में शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता आज भी प्रेरणा देती है। 17 जून 1999 को उन्होंने 5140 चोटी को दुश्मनों से मुक्त कराया। अपने पिता से आखिरी बातचीत में उन्होंने कहा, “डैडी, चोटी फतेह कर ली, चिंता न करें।” उनकी शहादत कारगिल विजय का प्रतीक है।
5140 चोटी की जीत
कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा ने बताया कि 17 जून 1999 को सुबह सात बजे विक्रम का फोन आया। उन्होंने 5140 चोटी फतेह करने की खबर दी। उस पल गर्व से उनका सीना चौड़ा हुआ। 26 साल बाद भी विक्रम की शहादत का दर्द बरकरार है, लेकिन उनका बलिदान देश के लिए गौरव है।
देश सेवा का जुनून
विक्रम में बचपन से देशभक्ति का जज्बा था। वे भगत सिंह और वीर शिवाजी की कहानियां सुनते थे। केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई के दौरान आर्मी अफसरों से प्रभावित होकर उन्होंने सेना में जाने का फैसला किया। उनके पिता का सपना भी आर्मी में अफसर बनने का था, जो विक्रम ने पूरा किया।
ये दिल मांगे मोर
गिरधारी लाल ने बताया कि विक्रम को डर नाम की चीज नहीं थी। 5140 चोटी जीतने के बाद उन्होंने सात दुश्मन सैनिकों को ढेर किया और बंकर नष्ट किए। एक एंटी-एयरक्राफ्ट गन भी कब्जाई। फिर भी उनका जज्बा था, “ये दिल मांगे मोर।” कमांडर के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे दुश्मनों को पूरी तरह खदेड़ना चाहते हैं।
