Kangra News: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी नगर में स्थित ज्वाला देवी मंदिर देश के सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठों में गिना जाता है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में एक विशेष स्थान रखता है। यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है बल्कि नौ प्राकृतिक ज्वालाएं सदियों से निरंतर जल रही हैं। इन्हें माता सती की जीभ का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है जो मां के दर्शनों के लिए आते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्वाला देवी मंदिर वह पवित्र स्थल है जहां माता सती की जीभ गिरी थी। कहानी है कि जब भगवान शिव माता सती के शरीर को लेकर ब्रह्मांड में घूम रहे थे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के टुकड़े किए। ये टुकड़े धरती के अलग-अलग हिस्सों में गिरे और वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। इस मंदिर की ज्योतियां उसी घटना की याद दिलाती हैं।
मंदिर के इतिहास से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा मुगल बादशाह अकबर से संबंधित है। कहा जाता है कि अकबर ने इस चमत्कारिक ज्योति को बुझाने का प्रयास किया था। जब उसकी सेना की सारी कोशिशें विफल रहीं तो उसने मां के चमत्कार के आगे घुटने टेक दिए। अकबर ने मंदिर में सोने का एक छत्र चढ़ाया था जो आस्था की इस जीत का प्रतीक बन गया।
मंदिर की अनूठी विशेषताएं
इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती। पूजा का केंद्र वे नौ ज्वालाएं हैं जो पत्थरों के बीच से स्वयं प्रकट होती हैं। इन ज्वालाओं को अनादि काल से जलता हुआ माना जाता है। भक्त इन्हें ही माता का साक्षात स्वरूप मानकर पूजते हैं। इसीलिए इसे भारत का सबसे अनोखा शक्तिपीठ कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का प्रारंभिक निर्माण पांडवों ने करवाया था। महाभारत काल से जुड़ा यह इतिहास इसकी प्राचीनता को दर्शाता है। समय के साथ मंदिर के स्वरूप में बदलाव आया लेकिन आस्था का केन्द्र वही बना रहा। आज यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
नवरात्रि में बढ़ जाती है रौनक
नवरात्रि के पर्व पर ज्वाला देवी मंदिर का माहौल देखने लायक होता है। वर्ष में दो बार मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इन दिनों मंदिर और आसपास का क्षेत्र श्रद्धालुओं से खचाखच भर जाता है। लोग दूर-दूर से मां के दर्शनों का पुण्य लेने के लिए आते हैं।
स्थानीय लोगों का दृढ़ विश्वास है कि ज्वाला देवी अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। श्रद्धालु यहां आकर अपने सुख-दुख की बात मां से कहते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य सुन ली जाती है। मां अपने भक्तों को हर संकट से उबारती हैं और उन्हें सुख-शांति प्रदान करती हैं।
ज्वाला देवी मंदिर कैसे पहुंचे
ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गगल एयरपोर्ट है जो लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई मार्ग से आने वाले यात्री एयरपोर्ट से टैक्सी या बस के जरिए मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यह रास्ता पहाड़ी और सुरम्य है।
रेल मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए पठानकोट रेलवे स्टेशन सबसे उपयुक्त रेलहेड है। पठानकोट से ज्वालामुखी के लिए नियमित बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध रहती हैं। सड़क मार्ग से आने वाले श्रद्धालु अपनी निजी वाहन से भी यहां आ सकते हैं। कांगड़ा, धर्मशाला और शिमला से बसें सीधी उपलब्ध हैं।
मंदिर तक पहुंचने का रास्ता अच्छी तरह से विकसित है। सरकार द्वारा यात्रियों की सुविधा के लिए पर्याप्त प्रबंध किए गए हैं। आसपास रुकने के लिए धर्मशालाएं और होटल्स हैं। श्रद्धालु यहां आसानी से ठहर सकते हैं और मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह स्थान आस्था और शांति का अनुभव प्रदान करता है।
