New Delhi News: देश की सर्वोच्च अदालत को कल अपना नया मुखिया मिलने जा रहा है। वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत कल भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे। वह निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई का स्थान लेंगे जिनका कार्यकाल आज समाप्त हो गया है। राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले एक गरिमापूर्ण समारोह में उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाएगी। जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल लगभग 15 महीने का होगा। देश के नए मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की आधिकारिक घोषणा 30 अक्टूबर को ही कर दी गई थी।
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में हुआ था। वह एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता एक किसान थे और उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए कड़ा संघर्ष किया। छोटे शहर से निकलकर देश के सबसे बड़े न्यायिक पद तक पहुंचने की उनकी यात्रा बेहद प्रेरणादायक है। यह सफर उनकी कड़ी मेहनत, अद्भुत प्रतिभा और कानून के प्रति उनके गहरे समर्पण का जीता जागता उदाहरण है।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिसार के ही एक सरकारी स्कूल से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वहां से उन्होंने कानून में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। अपनी पढ़ाई के दौरान वे अत्यंत मेधावी छात्र रहे और उन्हें अपनी कक्षा में प्रथम श्रेणी में प्रथम आने का गौरव भी प्राप्त हुआ। कानून की बारीकियों को समझने की उनकी ललक छात्र जीवन से ही स्पष्ट दिखाई देने लगी थी।
उन्होंने वर्ष 1984 में हिसार जिला अदालत से अपनी वकालत की शुरुआत की थी। एक युवा वकील के रूप में उन्होंने दीवानी और फौजदारी मुकदमों में अपनी अलग पहचान बनाई। बाद में वे चंडीगढ़ चले गए और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। वहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में पैरवी की और अपनी कानूनी समझ का लोहा मनवाया। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें जल्द ही न्यायपालिका की नजर में ला दिया।
पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक
साल 2004 में उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए। उनके फैसलों में हमेशा आम आदमी की पीड़ा और न्याय के प्रति संवेदनशीलता झलकती थी। उनकी कार्यशैली ने उन्हें न्याय जगत में बहुत सम्मान दिलाया। उनकी वरिष्ठता और योग्यता को देखते हुए उन्हें वर्ष 2018 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
हिमाचल प्रदेश में उनके छोटे से कार्यकाल के दौरान उन्होंने न्यायिक प्रशासन में कई सुधार किए। इसके बाद मई 2019 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। सर्वोच्च न्यायालय में आने के बाद से ही वे कई संवैधानिक पीठों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में देश की दशा और दिशा तय करने वाले कई महत्वपूर्ण निर्णयों में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई है।
ऐतिहासिक निर्णयों में प्रमुख भूमिका
सर्वोच्च न्यायालय में उनके कार्यकाल को कई बड़े और साहसिक फैसलों के लिए याद किया जाएगा। इनमें सबसे प्रमुख जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला है। वे उस पांच सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया था। इस फैसले ने देश के संवैधानिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा था। उन्होंने इस जटिल मुद्दे पर बहुत ही स्पष्ट राय रखी थी।
पेगासस जासूसी कांड ने जब देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था तब भी उनकी भूमिका अहम थी। सरकार पर विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा गंभीर आरोप लगाए गए थे। जस्टिस सूर्यकांत उस पीठ में शामिल थे जिसने इस मामले की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में नागरिकों की निजता का हनन नहीं किया जा सकता है।
राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी उन्होंने ऐतिहासिक कदम उठाया। उनकी पीठ ने ही ब्रिटिश काल से चले आ रहे इस कानून के इस्तेमाल पर रोक लगाने का आदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि जब तक सरकार इस कानून की समीक्षा नहीं करती तब तक इसके तहत नए केस दर्ज नहीं होने चाहिए। यह फैसला नागरिक स्वतंत्रता के लिहाज से बहुत बड़ा माना जाता है।
लोकतंत्र और लैंगिक न्याय के पक्षधर
बिहार में मतदाता सूची से जुड़े एक मामले में उन्होंने लोकतंत्र को मजबूत करने वाला फैसला दिया। वहां लाखों मतदाताओं के नाम सूची से गायब थे। उन्होंने इस मामले की सुनवाई करते हुए 65 लाख बाहर रखे गए मतदाताओं का विवरण सार्वजनिक करने का कड़ा निर्देश दिया। उनका मानना था कि मतदान का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है और इससे किसी को वंचित नहीं किया जा सकता है।
महिलाओं के अधिकारों को लेकर जस्टिस सूर्यकांत हमेशा से मुखर रहे हैं। उन्होंने एक महिला सरपंच को पद से हटाए जाने के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। उन्होंने न केवल उस महिला सरपंच की बहाली का आदेश दिया बल्कि अधिकारियों को फटकार भी लगाई। उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि पितृसत्तात्मक सोच के कारण महिलाओं को प्रशासन में काम करने से रोका नहीं जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व दिलाने में भी उनका बड़ा योगदान है। उन्होंने बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का निर्देश दिया था। इस आदेश से महिला वकीलों को आगे आने और नेतृत्व करने का मौका मिला। यह फैसला न्यायिक पेशे में लैंगिक समानता लाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रशासनिक मामले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2022 में पंजाब यात्रा के दौरान हुई सुरक्षा चूक का मामला काफी सुर्खियों में रहा था। इस गंभीर मुद्दे पर सुनवाई करने वाली पीठ में जस्टिस सूर्यकांत शामिल थे। उनकी पीठ ने ही सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था। इसका उद्देश्य भविष्य में प्रधानमंत्री की सुरक्षा को सुनिश्चित करना था।
सशस्त्र बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन योजना को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। इस योजना को संवैधानिक रूप से वैध घोषित करने वाले फैसले में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने माना कि सरकार की यह नीति सैनिकों के हित में है और इसमें कोई संवैधानिक खामी नहीं है। इस फैसले से लाखों पूर्व सैनिकों को बड़ी राहत मिली थी।
सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के मामले में भी उन्होंने सकारात्मक रुख दिखाया। उनकी पीठ ने यह सुनिश्चित किया कि महिला अधिकारियों को भी पुरुष अधिकारियों के समान अवसर और अधिकार मिलें। उन्होंने सेना में लैंगिक भेदभाव को खत्म करने की दिशा में चल रही सुनवाई में अहम भूमिका निभाई। उनके इन प्रयासों से सशस्त्र बलों में महिलाओं का सम्मान और बढ़ा है।
राज्यों पर असर डालने वाला फैसला
आने वाले समय में जस्टिस सूर्यकांत की पीठ एक और बड़ा फैसला सुनाने वाली है। यह मामला राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के टकराव से जुड़ा है। कई राज्यों ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल विधानसभा से पारित विधेयकों को लंबे समय तक लटकाए रखते हैं। इस फैसले का पूरे देश के संघीय ढांचे पर गहरा असर पड़ सकता है। सभी की निगाहें इस निर्णय पर टिकी हैं।
जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल 9 फरवरी 2027 तक रहेगा। वे 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर सेवानिवृत्त होंगे। उनके पास काम करने के लिए लगभग सवा साल का समय है। इस दौरान उनसे न्यायपालिका में लंबित मुकदमों के बोझ को कम करने की उम्मीद की जा रही है। वे तकनीक के इस्तेमाल से न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने के पक्षधर माने जाते हैं।
उनका कार्यकाल इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि देश कई अहम बदलावों से गुजर रहा है। संविधान, नागरिक अधिकारों और चुनावी प्रक्रियाओं से जुड़े कई मुद्दे आज बहस के केंद्र में हैं। ऐसे समय में देश को एक संतुलित और निष्पक्ष नेतृत्व की जरूरत है। कानून के जानकारों का मानना है कि जस्टिस सूर्यकांत अपने अनुभव से इन चुनौतियों का बखूबी सामना करेंगे।
एक किसान के बेटे का देश का मुख्य न्यायाधीश बनना भारतीय लोकतंत्र की मजबूती को दर्शाता है। यह साबित करता है कि प्रतिभा और मेहनत के दम पर कोई भी शिखर तक पहुंच सकता है। उनका जीवन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। कल जब वे शपथ लेंगे तो यह केवल एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं होगी बल्कि यह हर उस साधारण परिवार की जीत होगी जो बड़े सपने देखता है।
