India News: जस्टिस सूर्यकांत सोमवार को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे। वह मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई का स्थान लेंगे। उनका कार्यकाल लगभग पंद्रह महीने तक चलेगा। यह कार्यकाल नौ फरवरी 2027 तक रहेगा। इस दिन वह 65 वर्ष के हो जाएंगे। जस्टिस सूर्यकांत का जन्म हरियाणा के हिसार जिले में हुआ था।
साधारण पृष्ठभूमि से शीर्ष पद तक
जस्टिस सूर्यकांत एक साधारण पृष्ठभूमि से देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचे हैं। उन्होंने हिसार और बाद में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में वकालत की। वर्ष 2018 में उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। सर्वोच्च न्यायालय में उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसलों में भाग लिया है। ये फैसले राष्ट्रीय नीति और संवैधानिक मामलों से जुड़े हैं।
अनुच्छेद 370 पर ऐतिहासिक फैसला
जस्टिस सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को बरकरार रखा। इस फैसले से जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हो गया। यह फैसला हाल के दशक के सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक फैसलों में शामिल है। इसने राज्य के पुनर्गठन और केंद्र शासित प्रदेशों के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।
देशद्रोह कानून पर रोक
वह उस पीठ में भी शामिल थे जिसने औपनिवेशिक देशद्रोह कानून पर रोक लगाई। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे नई एफआईआर दर्ज न करें। यह निर्देश तब तक के लिए है जब तक सरकार इस कानून पर पुनर्विचार नहीं कर लेती। इस फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना गया।
पेगासस जासूसी मामला
जस्टिस सूर्यकांत ने पेगासस सर्विलांस मामले की सुनवाई में भाग लिया। कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर राज्य को असीमित अधिकार नहीं दिए जा सकते। इस फैसले ने नागरिकों के निजता के अधिकार को मजबूत किया।
बिहार मतदाता सूची में बदलाव
एक अन्य महत्वपूर्ण मामले में उन्होंने चुनाव आयोग को निर्देश दिए। आयोग को बिहार की मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए पैंसठ लाख मतदाताओं का विवरण देना था। इस फैसले ने चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता के महत्व पर जोर दिया। यह मतदाता अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक सार्थक कदम था।
लैंगिक न्याय और स्थानीय शासन
उन्होंने एक महिला सरपंच को उनके पद पर बहाल करने का आदेश दिया। इस फैसले में लैंगिक पूर्वाग्रह की समस्या को रेखांकित किया गया। बाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में महिलाओं के लिए आरक्षण का निर्देश दिया। इससे कानूनी पेशे में लैंगिक समानता को बढ़ावा मिला।
राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियां
जस्टिस सूर्यकांत उस संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई की। यह मामला राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से संबंधित था। इस फैसले का संघीय ढांचे और राजनीतिक व्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ा। यह मामला संवैधानिक व्याख्या का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
जस्टिस सूर्यकांत ने वन रैंक वन पेंशन योजना को संवैधानिक मान्यता दी। उन्होंने महिला सैन्य अधिकारियों के मामलों की भी सुनवाई जारी रखी। प्रधानमंत्री के काफिले में सुरक्षा चूक के मामले में भी उनकी भूमिका रही। उनके इन फैसलों ने देश की न्यायिक व्यवस्था को समृद्ध किया है।
